कम पैसों में फैमिली के साथ नैनीताल का ले सकते हैं आनंद, यहाँ झीलों के आसपास है ऐसी खूबसूरती जो मनमोह ले

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डेस्क।। झम-झम-झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के, छम-छम-छम गिरतीं बूंदें तरुओं से छन के, चम-चम बिजली चमक रही रे उर में घन के, थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के….ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर, जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर-झर, आंधी हर-हर करती दल मर्मर तरु चर-चर, दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर…सुमित्रानंदन पंत की इन पंक्तियों का मन पर कुछ ऐसा असर हुआ कि झीलों को करीब से देखने की इच्छा तीव्र हो गयी।

शनिवार की सुबह कार स्टार्ट की और चल पड़े झीलों की नगरी नैनीताल। बारिश की भीनी-भीनी फुहारों के बीच दिल्ली से सफर शुरू हुआ। कॉर्बेट म्यूजियम के नजदीक आते-आते बारिश कुछ शिकायती लहजों में आ गयी। खैर, कुछ समय बाद उसका दिल पसीजा तो इतनी छूट मिली कि सड़क किनारे ढाबे में रुक कर अदरक और इलायची वाली मीठी चाय का आनंद ले सकें। कुछ देर रुकने के बाद आगे बढ़े तो सीधे काठगोदाम जा पहुंचे। सामने एक क्रेजी किचन का बोर्ड दिखा तो जल्दी-जल्दी सूप और गर्मा-गर्म मोमोज को पेट के हवाले किया और चल पड़े पहाड़ों से मिलने।

भीमताल


काठगोदाम से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भीमताल, बस आधे घंटे में यहां पहुंच गये हम। सड़क के किनारे साथ-साथ चलता यह ताल रुकने की गुहार लगाता है। हमेशा अगली बार रुकने का वादा करते और आगे बढ़ जाते थे, मगर दिल ने कहा कि इस बार यहां रुक जायें। नाम से ही कयास लगाया जा सकता है कि यह ताल महाभारत के समय से ही यहां रहा होगा। भीम के उग्र स्वभाव से सभी परिचित हैं। कहानी यह है कि जब वनवास के दौरान पांडव यहां से गुजर रहे थे तो उन्हें पानी की जरूरत महसूस हुई। भीम के तरकश से एक तीर निकला और भीमताल का जन्म हो गया। झील के किनारे भीमेश्वर मंदिर है। रंग-बिरंगी नौकायें जल विहार का लालच देती हैं। पास की दुकान से रंग-बिरंगे छाते खरीदकर हम नौका भ्रमण पर निकल पड़ते हैं।

नौकुचिया ताल

नौ कोनों वाले इस ताल के बारे में सुना बहुत था। भीमताल से दूरी सिर्फ 4 किलोमीटर ही थी पर गाडिय़ों की लंबी कतार थी। जल्द ही रास्ता साफ हुआ तो सड़क के दोनों ओर फलों से लदे पेड़ लालच बढ़ाने लगे। एक जगह कुछ लोगों को नाशपाती तोड़ते देख हम रुक गये और जी भर के नाशपाती खायी। लाल-हरे सेब भी स्वादिष्ट थे। जल्द ही हम ब्रह्मा जी रचित इस सुरम्य ताल के करीब पहुंच गये। यहाँ रास्ते में वैष्णो माता मंदिर का है, जहां हनुमान जी की ऊंची मूर्ति है। आंखें जितनी दूर तक जा रही थीं- शांत और स्थिर झील दिखाई दे रही थी, जिसे बादल ढकने को तैयार थे। यहां एक कमल ताल भी है, बड़े-बड़े फूलों से लदा। तभी कैफे बाई-द-लेक दिखा। हरी-भरी लताओं से ढका यह कैफे गरमा-गर्म कॉफी की तलब बढ़ा रहा था। अंदर का माहौल सुरुचिपूर्ण है। आप चाहें तो देर तक कॉफी पियें, किताबें पढ़ें, साथ में सैंडविच और फ्राई भी ले सकते हैं।

नल दमयंती ताल

भीमताल से सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जगह हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। ऐसा मानना है कि नल इस ताल में डूब गये थे। सभी तालों के साथ कोई न कोई रोचक कहानी जुड़ी है। यहीं पास में हैं, पूर्णा-ताल, सीता-ताल, राम-ताल, लक्ष्मण-ताल और सूखा-ताल। सभी तालों से गुजरते हुये ओक और पाइन के पेड़ों से मुलाकात हुई। बारिश में धुले-पुछे और शबाब में डूबे इन तालों ने जैसे मन मोह लिया।

खुरपा ताल

नैनीताल के रास्ते में दूर से ही खुरपा-ताल दिखाई दिया, जिसके आसपास रंग-बिरंगे घर दिख रहे थे। यहाँ पर्यटकों में दूर से ही सेल्फी लेने की होड़ देखने को मिलती है। यहाँ के खुशनुमा मौसम में भुट्टे, चाय और नूडल्स की खुशबू घुल-मिल गई है। वहां पैराग्लाइडिंग के रोमांच का आनंद उठाते कई लोग दिखे। रंगों-उमंगों का मेला उमड़ा पड़ा था।

नैनीताल

सबसे मशहूर है नैनीताल, रंग-बिरंगी नौकाओं से अटा पड़ा। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सती के नैन यहां गिरे थे, इसलिये इस जगह को नैनीताल के नाम से जानते हैं। झील के किनारे नैना देवी मंदिर है, कहा जाता है कि इसमें नहाने से उतना ही पुण्य मिलता है, जितना मानसरोवर झील में नहाने से। बोटिंग न की यहां तो क्या किया…। मछलियां, पेड़, बादलों की धमाचौकड़ी, पानी की बदलती रंगत…प्रकृति के सभी रंग लुभावने हैं। इस बार जो लौटे… मन अब-तक वहीं किसी पेड़ की शाख पर अटका हुआ सा है…।

सात ताल

सात ताल यानी 7 तालों का समूह। पहले ऐसा लग रहा था कि यह किसी एक ताल का नाम है पर ऐसा कुछ नहीं है। ये दरअसल 7 ताल हैं। पन्ना ताल या गरुड़ ताल के नाम से जाने गए इस ताल के समीप खामोशी और शांति का वास है।

साभार: दैनिक जागरण

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