ऐसे में चुनावी साल में एक महत्वपूर्ण राज्य में संगठन को नहीं छोड़ा जा सकता। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि यहां संगठन में पूरे बदलाव की तैयारी चल रही है। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि कमान किसे मिलेगी लेकिन ज्यादा संभावना यही है कि आदिवासी और दलित फैक्टर को ध्यान में रखा जाएगा।
पिछड़े वर्ग को भी नहीं सा पाया संगठन
नेताओं का कहना है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पिछड़े वर्ग को ध्यान में रखकर की गई थी। हालांकि पिछड़े वर्ग में कोई प्रभाव पड़ा हो यह नहीं कहा जा सकता। साहू, कुर्मी, कलार सभी जातियों के आंदोलन हो चुके हैं। कांकेर में पिछले दिनों मुख्यमंत्री पहुंचे तो साहू समाज के नेताओं ने नंदलाल साहू हत्याकांड के मुद्दे पर उन्हें घेर लिया।
आदिवासी सीटों पर नजर
भाजपा को पता है कि चौथी पारी में एंटी इंकम्बेंसी से निपटना है तो हाथ से निकली आदिवासी सीटों को वापस अपने पाले में लाना होगा। पिछले चुनाव में बस्तर और सरगुजा में पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाई थी। अभी एट्रोसिटी एक्ट के मुद्दे पर देशभर में बवाल मचा। इसका असर यहां भी पड़ना लाजिमी है। ऐसे में आदिवासी नेता को सामने लाकर आदिवासी वोटरों को साने की तैयारी पार्टी कर रही है।