राजस्थान में घटा भूजल स्तर, पीने के पानी का प्रबंधन बना बड़ी चुनौती

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जयपुर। अपनी पेयजल जरूरतों के लिए बहुत कुछ जमीनी पानी पर निर्भर राजस्थान में भूजल का स्तर और इसकी गुणवत्ता बीते कुछ साल में तेजी से गिरी है। सुरक्षित पेयजल प्रबंधन देश के इस सबसे बड़े राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है क्योंकि कुल धरातलीय जल संसाधनों में उसका हिस्सा केवल लगभग एक प्रतिशत है। 

सरकारी अंकेक्षक कैग ने अपनी हालिया रपट में यह निष्कर्ष निकाला है। इसमें कैग ने कहा है कि सिचाई और पेयजल के लिए भूमिगत जल के अंधाधुंध दोहन से हाल के वर्षों में भूजल के स्तर में बड़ी गिरावट आई है। जो भूजल उपलब्ध है उसमें भी फ्लोराइड व नाइट्रेट मिश्रण तथा खारेपन की समस्या है।

विधानसभा के बजट सत्र में पेश इस रपट में कैग ने कहा है,'(राज्य में) उपलब्ध भूजल भंडारों में तेजी से कमी से रासायनिक मानकों पर पानी की गुणवत्ता में गिरावट आई है। ऐसे में सुरक्षित पेयजल का प्रबंधन राज्य के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।’

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने फरवरी 2010 में राज्य जल नीति के तहत जल के अन्य उपयोगों पर पीने के लिए उसके इस्तेमाल को शीर्ष प्राथमिकता देने की नीति अपनाई। लेकिन कैग के अनुसार, यह नीति कोई व्यावहारिक लक्ष्य तय करने में विफल रही क्योंकि जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के पास कोई दीर्घकालिक योजना ही नहीं रही। 

रपट में कहा गया है कि राज्य में पेयजल की गुणवत्ता तय नियमों के हिसाब से सुनिश्चित नहीं की जा सकी और इसमें पेयजल गुणवत्ता सुधार प्रयासों की धीमी गति का जिक्र है। कैग ने पेयजल आपूर्ति परियोजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने को भी अपनी इस रपट में रेखांकित किया है। सरकारी अंकेक्षक ने दीर्घकालिक, भावी योजनाएं बनाए जाने की जरूरत जताई है ताकि राज्य जल नीति को कार्यान्वित किए जा सकने वाले लक्ष्यों में बदला जा सके। 

उल्लेखनीय है कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में 10.40 प्रतिशत से अधिक इलाके के साथ राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है लेकिन कुल धरातलीय जल संसाधनों में उसका हिस्सा केवल लगभग एक प्रतिशत है। सीमित बारिश और जमीनी पानी के गिने चुने संसाधनों के चलते इसके लिए भूजल का स्तर और गुणवत्ता बहुत मायने रखती है। 

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