शरद पूर्णिमा की रात देवी मां को खुश करना है तो करें ये उपाय !

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डेस्क। शरद पूर्णिमा आने वाले रविवार 13 अक्टूबर को आश्विन मास की अंतिम तिथि पर है। इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक इस दिन पवित्र नदी में स्नान और दान-पुण्य करने का अपना एक विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रिकाल में देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और अपने भक्तों के घरों में जाती हैं। इतना ही नहीं, देवी लक्ष्मी पूछती हैं कि जागृति यानि कौन-कौन जाग रहा है? जो लोग शरद पूर्णिमा की रात जागते हैं और पूजा करते हैं उन्हें देवी मां की कृपा मिलती है।

शरद पूर्णिमा के अवसर पर घर में ‘सत्यनारायण’ की कथा जरूर करवानी चाहिए। भगवान विष्णु को केलों का भोग लगायें। ये परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। देवी लक्ष्मी की पूजा सूर्यास्त के बाद करनी चाहिए। पूजा के दौरान दक्षिणावर्ती शंख से महालक्ष्मी और विष्णुजी का अभिषेक करें। शंख में केसर मिश्रित दूध डालकर भगवान को स्नान कराना चाहिए। महालक्ष्मी मंत्र का जाप करें। मंत्र जाप कम से कम 108 बार करें। इसके लिए कमल के गट्टे की माला से जाप करना चाहिए।

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मंत्र- “ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम:।”
पूर्णिमा की शाम शिवलिंग के पास दीपक जलायें और ‘ऊँ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
बजरंगबली जी के सामने सरसों के तेल का दीपक जलायें और पान, सुपारी और लौंग आदि अर्पित करें।
शाम के वक्त तुलसी के पास दिये जलायें। इस बात का ध्यान रखें कि सूर्यास्त के बाद ‘तुलसी’ को स्पर्श न करें।

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शरद पूर्णिमा की रात्रि में आप भगवान शिव को खीर का भोग अवश्य लगायें। खीर घर के बाहर या छत पर चंद्र के प्रकाश में रखकर बनायें। भोग लगाने के बाद खीर का प्रसाद ग्रहण करें। ये खीर स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होती है।

शरद पूर्णिमा को औषधीय गुणों वाली रात कहा गया है। इस दिन ली गई औषधि बहुत जल्दी लाभ पहुंचाती है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है, ठीक उसी प्रकार शरद पूर्णिमा पर चंद्र की किरणें भी हमारे लिए अत्यंत शुभ होती हैं। इसलिए रात में कुछ देर तक चांद की चांदनी में जरूर बैठें। ऐसा करने से मन एवं मस्तिष्क को शांति मिलती है।

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