ब्लैक मनी का अटल सच: मोदी जी !!!! रूहें भी हिसाब मांगतीं हैं…

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आज फिर से जो लिख रहा हूँ वो चुभने वालों को चुभेगा लेकिन चिंतन-मनन करने वाले लोग मेरे कथन पर एक बार विचार जरूर करेंगे। नोटबंदी एक राजा की सनक का परिणाम नहीं थी बल्कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र था। यह इसलिए रचा गया था ताकि उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में टक्कर देने वाले क्षेत्रीय दलों की ब्लैक मनी को नष्ट कर दिया जाए। नि:संदेह यह एक अच्छा कदम था और हर व्यक्ति को राजा के इस पुनीत भाव की सराहना करनी चाहिए, लेकिन सराहना का पासा उस वक्त पलट जाता है, जब नोटबंदी के कुछ ही दिन पहले (कुछ हजार खास उद्योगपतियों, राजनेताओं व विशेष धनपशुओं) अंदरखाने अरबों रूपए की ब्लैक मनी रातों-रात सफेद कर ली जाती है।

यही नहीं, जब इस देश की जनता 2000/=रूपए बदलवाने के बैंकों, डाकघरों पर आधारकार्ड की फोटो काॅपी लेकर सुबह से शाम लाइन लगाए रखती थी, उस वक्त भी बैंकों से नई नोटों की मोटी रकम बाहर हो रही थी। याद करिए जब गुजरात के एक नेता की बेटी लाखों रूपए की गुलाबी नोटों के साथ सोशल मीडिया पर सबको मुंह चिढाती अवतरित हुई थी।

चीन से ऐसे ही आंख मिलानी थी क्या?

उत्तर प्रदेश की एक बड़ी महिला नेता ने अपने सभी विधानसभा प्रत्याशियों को आनन-फानन में लखनऊ बुलाया और सबको रकम (ब्लैकमनी) वापस कर दी कि ये बदलवा कर लाओ। ये दोनों मामले कुछ दिन चर्चा में रहे और फिर सब ऐसे खत्म हुआ मानो कुछ हुआ ही नहीं था। पिछले दिनों एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ मेरी चाय पर चर्चा चल रही थी।

नोटबंदी पर उन्होंने एक गजब की टिप्पणी की बोले- आपके फोटो स्टेट आधार कार्ड पर आपको नियमतः 2000 रूपए मिल रहे थे लेकिन उसी आधार पर तमाम स्थानों पर लाखों रूपए सफेद हो रहे थे। नोटबंदी के बाद चूंकि काम धंधा पूरी तरह बंद हो चुका था, लिहाजा उस दौरान करीब 45 दिन एक नया काम बेरोजगारों ने पकड़ा । वे अपना-अपना आधार कार्ड लेकर व परिवार के कुछ अन्य लोगों के आधार कार्ड की फोटो काॅपी लेकर दूसरों के लिए लाइन में लगने लगे और शाम को अपना कमीशन सीधा कर लिया।

वापस आते हैं मूल विषय पर कि “रूहें भी हिसाब मांगती हैं” । नोटबंदी को लेकर बड़े-बड़े तर्क दिए गये थे। मसलन- नकली नोटों का चलन बंद हो जाएगा। आतंकवाद खत्म होगा। पत्थरबाजी काश्मीर में बंद हो जाएगी। ब्लैक मनी खत्म होगी। दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ। अभी कल ही यानी 20 सितंबर, 2018 को लखनऊ में 2000/= रूपए के नकली नोटों की एक बड़ी खेप पुलिस ने दबोची है। नकली नोटों का देश में पकड़े जाने का सिलसिला पहले जैसा हो चुका है।

ब्लैक मनी आया नहीं? RBI की REPORT सारे सच को बाहर रख चुकी है। उस पर तुर्रा यह कि नई नोट छापने पर ही करीब एक लाख करोड़ का बेवजह का खर्च आया। ….सवाल ये उठता है कि “राजा की सनक” से देश को मिला क्या? जरा सोचिए राजा की इस सनक से देश को किंचित लाभ भी मिला होता तो लाइन में लगकर मरने वाले 200 लोगों की मौत जस्टीफाई की जा सकती थी कि वे देश की बेहतरी के लिए शहीद हो गये। जिनके घर से ये लाशें निकली हैं, कभी उनके दर्द को भी महसूस करिएगा। आपका भक्ति भाव आपकी अंतरात्मा को कचोटेगा। नोटबंदी नहीं हुई होती तो शायद आज भी किसी बच्चे का पिता, किसी का दादा, बाबा, दादी….जिंदा होते। …..आज नोटबंदी पर फिर इसलिए लिखा कि कल लखनऊ में ही नकली नोट पकड़ी गई। वह भी 2000/=की। राजा कहता था बड़ी नोट भ्रष्टाचार का मूल श्रोत है तो नोटबंदी के बाद 2000/=की नोट किसके लिए लाई गई थी?

जरा पाकिस्तान पर भी:- चुनाव से पहले जो दस सिर लाया करते थे। आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चलने की बात करते थे। जो क्रिकेट पाॅलिटिक्स करते थे वे आज क्रिकेट भी खेल रहे हैं । कल यानी 20 सितंबर, 18 को BSF के जवान नरेंद्र की पाकिस्तानी सेना द्वारा नृशंस हत्या के बाद भी विदेश मंत्री स्तर की मुलाकात की बात कर रहे हैं। जब आवाज खिलाफ उठी तो देश को पप्पू बना रहे हैं कि नहीं यह बातचीत की शुरूआत नहीं है। सब कुछ गजब चल रहा है। चैनल सच दिखा नहीं सकते। बड़े अखबार सच लिख नहीं सकते, क्योंकि सब “NEWS बिजनेस” के धंधे में हैं।

व्यापार, व्यापार ही होता है वहीं चाहें “धर्म का धंधा” हो या “समाचार” का….माल कमाना सबसे बड़ा राष्ट्रीय धर्म है, चाहे जैसे आए। पिछले दिनों एक बड़े बैनर के मेरे एक पत्रकार मित्र मिले। उवाचे-……..साला माल कमा रहा है लाला…..मा…….गालियां खाता घूम रहा है रिपोर्टर….ब…….किसको-किसको बताएं भाई! हम तो ठहरे नौकर….मालिक को जो सरकार बोलेगी ….वो हुक्म मालिक हमको देगा…… वैसे जय हो राजा साहेब की…..1947 के बाद से सब राजा ही आए हैं ….अपवाद स्वरूप….राजेंद्र प्रसाद जी, शास्त्री जी, सम्पूर्णानंद जी…अटल जी…….(आप को दस-बारह नाम और जो याद आएं जोड़ लीजिए)…….वरना तो कोई अपने लिए जिया तो कोई उद्योगपतियों के लिए…..

लेखक पवन सिंह वरिष्ठ पत्रकार का संक्षिप्त परिचय

दैनिक 1989 में नवजीवन से पत्रकारिता की शुरुआत की। दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, हिन्दुस्तान व आऊटलुक में वरिष्ठ पदों पर कार्य किया। 29 पुस्तकें लिखीं जिसमें से चार पुस्तकें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरूस्कृत हुईं। भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा सिक्किम पर अध्ययन हेतु फैलोशिप मिली। माॅरीशस में भारतीय संस्कृति के अध्ययन-अध्यापन हेतु गये। लखनऊ विश्वविद्यालय के पर्यटन अध्ययन संस्थान द्वारा नेपाल व भारत के सांस्कृतिक रिश्तों पर अध्ययन के लिए उन्हें नेपाल भेजा गया। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन का कार्य करते हैं। हाल ही में प्रकाशित किताब “पत्रकारिता की शवयात्रा ” काफी चर्चित रही है।

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