उत्तर प्रदेश के इस जिले में रावण पूजा से शुरू होता है दशहरा उत्सव

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लखनऊ।। देश में दशहरा अवसर पर भले ही जगह-जगह रावण दहन की परम्परा है लेकिन प्रयागराज में दशहरे की शुरूआत रावण की पूजा से होती है । शारदीय नवरात्र से शुरू होने वाले दशहरा उत्सव में सबसे पहले मुनि भारद्वाज के आश्रम में लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और आरती की जाती है और उसकी भव्य शोभायात्रा निकलती है । प्रयागराज की श्री कटरा रामलीला कमेटी उत्तर भारत की इकलौती ऐसी संस्था है जहां रावण पूजन की सालों पुरानी परम्परा है।

श्री कटरा रामलीला कमेटी के महामंत्री गोपाल बाबू जायसवाल ने बताया कि विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती के उद्गम स्थल और ऋषि भारद्वाज के आश्रम में रावण पूजन की परम्परा है । माना जाता है कि प्रयागराज रावण का ननिहाल है इसलिये यहां रावण का दहन नहीं किया जाता।

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प्रयागराज में रावण की शोभायात्रा निकाले जाने के पीछे एक पुरानी मान्यता है। उन्होने शिव पुराण और वाल्मिकी रामायण के हवाले से बताया कि जब श्री राम, रावण वध कर अयोध्या लौट रहे थे तब महर्षि भारद्वाज के आश्रम में आशीर्वाद लेने के लिये रूके लेकिन मुनि ने उन्हें यह कह कर आशीर्वाद देने से मना कर दिया कि उन पर ब्रहम हत्या का पाप है।

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तब श्रीराम ने भारद्वाज ऋषि से क्षमा मांगी और प्रायश्चित स्वरुप प्रयागराज में गंगा किनारे सवा करोड़ बालू के शिव लिंग तैयार कर उनकी पूजा अर्चना करने के बाद उन सब का एक शिवलिंग बनाकर शिव कुटी घाट पर स्थापित किया और रावण की हत्या की माफी भी मांगी।

उन्होने धर्म ग्रंथों को आधार मानकर बताया कि पुलत्स्य ऋषि के पुत्र महर्षि अगस्त्य एवं विश्वश्रवा थे। विश्वश्रवा की शादी ऋषि भारद्वाज की पुत्री देवांगना से हुई थी और उनसे कुबेर का जन्म हुआ। विश्वश्रवा ने बाद में दूसरी शादी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी से किया जिससे रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा का जन्म हुआ।

प्रयाग महर्षि भारद्वाज की तपोभूमि होने के कारण कटरा निवासी इसे रावण की ननिहाल मानते हैं। रामलीला के आयोजक इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि रावण का किरदार निभाने वाला ब्राहम्ण ही हो।

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