अकेलापन महसूस कर रहें तो इस बातों को जरूर अजमाकर देखें !

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डेस्क. शून्य जो है, ये हिंदुस्तानी आविष्कार है। जब वैज्ञानिक लोग शून्य की परिभाषा को विदेश में ले गए तो वहां के जो धार्मिक लोग थे, वे बड़े गुस्सा हुए कि ‘नहीं, नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। शून्य कोई चीज है ही नहीं।’ पर क्या आपके महसूस न करने मात्र से यह सिद्ध हो जाता है कि कोई चीज नहीं है? अगर शून्य नहीं होता तो आज कंप्यूटर नहीं होते।

अकेलापन

शून्य! उसमें ‘सब कुछ’ है और ‘कुछ भी नहीं’ है। कहां है वो ‘शून्य’? वह है उस परमात्मा का अनुभव! वह है उस ‘शून्य’ का अनुभव जो सारी सृष्टि में व्याप्त है। उस सृष्टि में भी है, जिस सृष्टि का मनुष्य को कुछ पता नहीं है। समय के आखिरी छोर तक है और समय से पहले भी है। वह हर जगह है। और हरेक जगह होने के नाते तुम्हारे हृदय में भी है।

तुम्हारा मन सारे दिन तुमको परेशान करता है पर खुद कभी परेशान नहीं होता है। इस संसार के अंदर कोई चीज नहीं है, जो मन को परेशान कर सके पर मन तुमको जरूर परेशान करता है।

चाहे मेरे आस-पास कितना भी दुख हो, उस दुख के होने के बावजूद मेरे अंदर परमानंद है। मैं कितना धनी हूं? कहा है कि इस संसार के अंदर निर्धन कोई नहीं है। सब धनी हैं! सबकी गठरी लाल है। बस, खोलना नहीं जानते हैं- ‘इस विधी भयो कंगाल।’ क्या हो जाता है मनुष्य के साथ? वह छोटी-छोटी बातों में खो जाता है। ज्ञान खोने के लिए किसी ने नहीं लिया। ज्ञान को पाना, अपने आपको पाना, अपने आपको समझना, अपने अंदर स्थित उस शांति का अनुभव करना, अपने अंदर स्थित उस परमात्मा का अनुभव करना। यह मूल चीज है!

कई लोग कहते हैं हम अकेलापन महसूस करते हैं। मैं कहता हूं कि तुमको अकेलापन महसूस करने की क्या जरूरत है? तुम जहां भी जाओ, तुम्हारा परमपिता परमेश्वर, परममित्र तुम्हारे साथ है। तुमको वह कभी छोड़ता ही नहीं है। जिस दिन वह साथ छोड़ देगा, बस सब गया। वह तो आखिरी समय तक तुम्हारे साथ रहेगा! उससे यारी करो। वह जो अनुभव है, चाहे थोड़ी देर ही रहे, परंतु आनंददायक होता है।

क्योंकि किसी चीज ने अपने परमात्मा के साथ मिलकर कुछ क्षण बिताए हैं, इस शरीर में रहते हुए अविनाशी का अनुभव किया है। जब मनुष्य अविनाशी का अनुभव करता है तो न कल है न परसों, न ऊपर है न नीचे है, न चिंता है न फिक्र है, न आशा है न निराशा है। सब सम हो जाता है। समय रुक जाता है। वह है असली शांति का अनुभव! तुम्हारे अंदर स्थित जो ‘अनुभव’ है, अगर तुम उसको समझना चाहते हो तो अंदर की आंखें खोलनी पड़ेंगी, तब तुमको दिखाई देगा। तब तुमको समझ में आएगा कि ‘परमानंद’ क्या चीज है। तब तुमको समझ में आएगा कि हृदय क्या चीज है।

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