पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को इन तीन कार्यों के लिए आज भी किया जाता है याद- राम आसरे विश्वकर्मा

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चन्दौली।। 1982 से 1987 तक हमारे देश के राष्‍ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह का नाम भला किसकी स्‍मृतियों से धूमिल हो सकता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं विश्वकर्मा समाज के गौरव स्व.ज्ञानी जैल सिंह की पुण्यतिथि समारोह चन्दौली के चकिया स्थित काली मन्दिर प्रांगण में मनाई गयी। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्वमंत्री राम आसरे विश्वकर्मा ने ज्ञानी जैल सिह के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रध्दांजलि अर्पित किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्यूतबन्धन विश्वकर्मा जिलाध्यक्ष तथा संचालन सुभाष विश्वकर्मा ने किया। श्रद्धांजलि अर्पित करने वालो में राजेश विश्वकर्मा राष्ट्रीय महासचिव, पूर्व विधायक पूनम सोनकर, रामअवतार विश्वकर्मा प्रदेश उपाध्यक्ष, डा० शिव प्रसाद विश्वकर्मा, कमलेश खाम्बे, नन्दलाल विश्वकर्मा प्रदेश सचिव, यमुना विश्वकर्मा, छन्नूलाल विश्वकर्मा, विवेक विश्वकर्मा जिलाध्यक्ष विश्वकर्मा ब्रिगेड ,विष्णु विश्वकर्मा प्रदेश सचिव, हरेन्द्र विश्वकर्मा ने ज्ञानी जैल सिह के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया।

ज्ञानी जैल सिंह का जन्‍म संधवान के फरीदकोट जिले में एक सिक्‍ख परिवार में हुआ था। इनको ज्ञानी की उपाधि उस समय मिली जब अमृतसर के शहीद सिख मिशनरी कॉलेज से इन्‍होंने गुरु ग्रंथ साहिब की पढ़ाई पूरी की। आपको बता दें कि इसके अलावा इन्‍होंने किसी स्‍कूल से औपचारिक तौर पर पढ़ाई नहीं की, लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब के बारे में पढ़ने के कारण इनको ‘ज्ञानी’ की उपाधी दी गई और इस तरह ये जैल सिंह से बन गये ज्ञानी जैल सिंह।

राष्ट्रीय अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा ने कहा कि ज्ञानी जैल सिंह विश्वकर्मा परिवार में पैदा अवश्य हुए थे लेकिन वह देश के सभी वर्गो के नेता थे।वह पंजाब के एक गरीब बढई विश्वकर्मा परिवार में पैदा होकर अपने संघर्ष के बल पर पंजाब के मुख्यमंत्री तथा देश के गृहमंत्री और देश के राष्ट्रपति बने थे।उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि यदि मन में दृढ इच्छा शक्ति हो और नेतृत्व के प्रति सच्ची निष्ठा हो तो ब्यक्ति संघर्ष के बल पर गरीब और पिछडी जाति में पैदा होकर भी देश के बडे पद पर पहुच सकता है।इसलिए विश्वकर्मा समाज के लोगो को अपने मन से हीनता निकालनी चाहिए और अपनी पहचान बनाने के लिये कर्म करना चाहिये।

ज्ञानी जैल सिंह ने अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल में देश से जुड़कर तीन ऐसे बड़े काम किये, जिनके लिए उन्‍हें आज भी याद किया जाता है। इन कामों में पहला था स्‍वतंत्रता सेनानियों को पेंशन दिलाना। जी हां, वो ज्ञानी जैल सिंह ही थे जिन्‍होंने स्‍वतंत्रता सेना‍नियों के लिए पेंशन की व्‍यवस्‍था करायी। इनके द्वारा कराया गया दूसरा बड़ा काम था अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ही शहीद उधम सिंह की अस्थियों को लंदन से भारत मंगाना। गौरतलब है कि उधम सिंह जब लंदन में कुछ अंग्रेजों से अपने शहीद स्‍वतंत्रता सेनानियों की मौत का बदला लेने पहुंचे, तो बदला लेने के बाद अंग्रेजों की गोली से वह वहीं शहीद हो गये। अब उनकी भारतीय परंपरा के अनुसार उनकी अस्थियों को भारत की सरजमीं पर मंगाना बड़ा काम था। इस काम को कर के दिखाया जैल सिंह ने। इसके बाद इनके द्वारा किया गया तीसरा बड़ा काम था गुरु के गहनों और अन्‍य चीजों को भी मंगवाना।

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ज्ञानी जैल सिंह एक समाजवादी विचारक चिन्तक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी महान देशभक्त और गरीबों के लिये संघर्ष करने वाले नेता थे।वह कभी अन्याय व अपमान बर्दाश्त करने के तैयार नहीं थे। देश की आजादी की लडाई में अंग्रेज़ों से लडते हुए बार बार जेल गये इसलिए जेलर ने झुझलाकर इनका नाम जैल सिंह रख दिया। ज्ञानी जी गरीबों और पिछडो वंचितो के लिये आजीवन कार्य करते रहे और राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुये भी राष्ट्रपति भवन में विश्वकर्मा समाज के लोगों के लिये एक अलग कार्यालय सेल बनाया था जिसमें वह देश के गरीब से गरीब ब्यक्ति से मिलते थे और जिसका प्रभारी श्री परमानंद पांचाल को बनाया था।

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ज्ञानी जैल सिंह अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे लेकिन सच्चा देशभक्त और हिन्दी प्रेमी होने के कारण हमेशा मातृभाषा हिन्दी में ही अपना सरकारी कामकाज करते थे।एक बार संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी लागू करने के प्रश्न पर जब विपक्षी दलों द्वारा धरना दिया जा रहा था तो ज्ञानी जी पूर्व राष्ट्रपति होने के बाद भी हिन्दी लागू करने के लिये प्रोटोकॉल तोडकर संघ लोक सेवा आयोग के सामने धरने पर बैठे थे ताकि गांव के गरीब पिछडे दलित और किसान के लडके हिन्दी माध्यम से परीक्षा देकर आई०ए०एस० बन सके।

राष्ट्रपति रहते हुये भी वह कभी रबर स्टैंप नही बने और केन्द्र सरकार के इंडियन पोस्टल बिल पर नागरिकों के मूल अधिकार के हनन के प्रश्न पर असहमत होकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी की बात नही मानी और हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया।उनके इस कदम से उन्हे देश के एक सशक्त राष्ट्रपति के रूप में उन्हें याद किया जाता रहा है।हालाकि प्रधानमन्त्री नाराज हो गये थे और राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उन्हें उनके उपेक्षा का शिकार भी होना पडा था।25 दिसम्बर 1995 को एक सडक दूर्घटना में उनकी मौत हो गयी।यद्धपि अगर उनका सही समय से इलाज किया गया होता तो उनको बचाया भी जा सकता था।

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आज जो बीजेपी की सरकार है वह दलितों और पिछडों की विरोधी है। कितने परिश्रम के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार ने विश्वकर्मा पूजा का सार्वजनिक अवकाश घोषित करके विश्वकर्मा की पहचान बनायी थी और विश्वकर्मा समाज का सम्मान बढाया था लेकिन भाजपा सरकार ने विश्वकर्मा पूजा का सार्वजनिक अवकाश निरस्त कर विश्वकर्मा समाज का अपमान किया और पहचान मिटाने का काम किया।भाजपा पिछडे वर्गो के आरक्षण को समाप्त करने की साजिश कर रही है।अब कोई पिछडी जाति का नौजवान चाहे विश्वकर्मा ही क्यों न हो विश्वविद्यालय का प्रोफेसर नहीं बन सकता। पिछडा वर्ग आयोग को संबैधानिक दर्जा देने के नाम पर आयोग के स्वरुप को बदला जा रहा है जिससे भविष्य में आरक्षण का वास्तविक लाभ पिछडे वर्गों न मिल सके।

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समाजवादी पार्टी की सरकार में विश्वकर्मा समाज के विकास की जो योजनाये चलायी गयी थी भाजपा सरकार बनते ही उसको बन्द कर दिया गया।विश्वकर्मा समाज से कहा कि वह एक नजर अपने कारोबार पर रखे और एक नजर दिल्ली और लखनऊ के सरकार पर रखे कि कौन सरकार उनकी हितैषी है।जो सरकार समाज के हितों के विपरीत काम कर उसे बदलने के लिये तैयार रहना चाहिये।ज्ञानी जैल सिंह आज अगर होते तो कभी चुप नही बैठते समाज के सम्मान को बचाने के लिये अवश्य आगे आते।अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा पूरे देश में 25 दिसम्बर को प्रतिवर्ष ज्ञानी जैल सिंह की पुण्यतिथि मना कर उन्हें याद करती है।श्री विश्वकर्मा ने कहा कि आज सभी विश्वकर्मा समाज के लोगअपने पूर्वज ज्ञानी जैल सिह के ब्यक्तित्व और कृतित्व को याद करे और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लें यही उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी।

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कार्यक्रम को अशोक बागी चेयरमैन, डा० शिव प्रसाद विश्वकर्मा, अवनीश सोनकर, रामविलास विश्वकर्मा, डा० जगदीश विश्वकर्मा, शीला विश्वकर्मा, राम आधार, विजय बहादुर विश्वकर्मा, गणेश विश्वकर्मा, जगदीश विश्वकर्मा, सुभाष विश्वकर्मा, विजय विश्वकर्मा, मदनमोहन विश्वकर्मा, शिवकुमार विश्वकर्मा, शैलेश विश्वकर्मा, कमलेश विश्वकर्मा, श्याम बिहारी विश्वकर्मा, राजेन्द्र विश्वकर्मा, सदानन्द विश्वकर्मा, संजू विश्वकर्मा, मनोज विश्वकर्मा, सौरभ विश्वकर्मा, विपिन विश्वकर्मा, धर्मेन्द्र विश्वकर्मा, नन्दू विश्वकर्मा, किशन विश्वकर्मा, विजय विश्वकर्मा, श्रीप्रकाश विश्वकर्मा सहित अन्य लोगों ने सम्बोधित किया।

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