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लखनऊ ।। बीजेपी के सुल्तानपुर से सांसद वरुण गांधी कई दिनों खामोश हैं। कभी यूपी में हर बड़े मुद्दो पर यह फॉयर ब्रांड नेता अपनी बेबाक राय रखता था। लेकिन वर्तमान में वरुण की खामोशी को राजनीति समीक्षक तुफान से पहले की शांति बता रहे हैं। वरुण गांधी के कांग्रेस में जाने की अटकलें काफी दिनों से सत्ता के गलियारों में चल रही हैं। अगर ऐसा होता है तो वास्तव में कांग्रेस को यूपी में एक दमदार नेता मिल जाएगा। जिसकी उसे जरूरत भी है।

 

सांसद वरुण गांधी

 

वरुण के सेक्स स्कैंडल ने उन्हें जिस तरह से बैकफुट पर लाने को मजबूर कर दिया उससे तो वो बहुत पहले ही उबर चुके हैं। बावजूद इस नेता की चुप्पी को समीक्षक हल्के में लेने को तैयार नहीं है। आज हम उन पांच कारणों को आपके सामने रख रहे हैं जिनके कारण वरुण के कांग्रेस में जाने की हवा गर्म हुई है।

 

1-प्रियंका और राहुल गांधी के साथ राहुल की गहरी दोस्ती

यह तो सभी जानते हैं कि संजय गांधी के मौत के बाद मेनका गांधी की इंदिरा गांधी के साथ अनबन शुरू हो गई थी। यह अनबन सोनिया गांधी भी जारी रही। जिसके कारण मेनका गांधी ने पार्टी व परिवार दोनों को छोड़ दिया। इसके बाद से बीजेपी ही मेनका का नया घर बन गया। मेनका की देखरेख में राजनीति का ककहरा सिखने वाले वरुण गांधी भी यूपी में बीजेपी के फॉयर ब्रांड नेता बने। लोकसभा भी पहुंच गए। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने राजनीति जीवन में अपनी चाची सोनिया गांधी, बड़े भाई राहुल गांधी साथ ही बड़ी बहन प्रियंका के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। हालांकि कांग्रेस पर गाहे बेगाहे निशाना साधते से पीछे भी नहीं रहते थे। वरुण ने राहुल और प्रियंका को बड़े भाई बहन जैसा सम्मान दिया।

 

2-बीजेपी में हाशिए पर हैं वरुण गांधी

शुरूआती राजनीति जीवन में बीजेपी में जिस प्रकार वरुण गांधी की छवि लोगों को देखने को मिली वर्तमान में उसके ठीक उलट वरुण गांधी दिखाई देने लगे हैं। राजनीति पंडितों का कहना है कि बीजेपी में उन्हें नजदअंदाज करते हुए हाशिए पर ला दिया गया है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी चाहती तो वरुण गांधी एक चेहरा बन सकते थे, लेकिन पार्टी में वरुण गांधी की गुंज तो दूर उनका नाम लेने वाला भी कोई नजर नहीं आ रहा है। अब तो कहा जाने लगा है कि मोदी-शाह के उदय ने ही वरुण गांधी का सूरज डूबा दिया।

 

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3-पार्टी में वरुण गांधी को भीतर घात का आघात

राजनीतिक समीक्षकों को मानना है कि वरुण गांधी बीजेपी में भीतर घात के शिकार हो रहे हैं। वरुण का नाम ऐेसे नेताओं के लिस्ट में भी शामिल है जो हिंदूत्व एजेंड पर जमकर बोलता है। हिंदूत्व के एक ऐसे ही बयान के कारण उनकी तीखी आलोचना भी हुई थी। हद तो यह हो गई थी वरुण के उठाए गए मुद्दो को ही बीजेपी के दूसरे नेताओं ने हाईजेक कर लिया और उन्होंन इसका फायदा भी उठाया। आश्चर्य तो तब हुआ जब वरुण गांधी को इसका कोई क्रेडिट नहीं मिला। इसके अलावा यूपी में चुनावें में उन्हें दरकिनार किया जाना, उनका सेक्स स्कैंडल उछाला जाना और यूपी सीएम के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया जाना इन तमाम घटनाओं को उनके समर्थक वरुण के साथ भीतर घात मानते हैं।

4-कांग्रेस को वरूण जैसे तेज तर्रार नेता की जरूरत

अब इसे सियासी जरूरत कहिए या समय का चक्र। आईसीयू में पड़ी कांग्रेस को भी वरुण गांधी जैसे फॉयरब्रैंड नेता की जरूरत है। ऐसे में राहुल-वरुण अगर एक साथ आते हैं तो कांग्रेस को संजीवनी तो मिलेगी ही कार्यकर्ताओं व समर्थकों में भी नई शक्ति का संचार होगा। दो भाईयों के मिलन को भावनाओं के साथ जोड़ कर देखा जाए तो जनता हर भावनात्मक पहलुओं को स्वीकार करती है। ऐसे में दोनों भाईयों के एक साथ होने के इस भावात्मक पहलु को जनता भी हांथो हांथ उठा लेगी।

5-वरुण गांधी में दिखती हैं तुफान से पहले की शांति

ऐसा नहीं है कि बीजेपी में खिलाफत करने वालों की कमी है। शत्रुघ्र सिंहा और जशवंत सिंह ऐसे खुले उदाहरण हैं। जबकि वरुण गांधी चुप हैं। सवाल यह है कि वरुण गांधी की यह खामोशी तुफान से पहले की शांति वाली
कहावत पर सटीक बैठती है या नहीं। क्या वरुण किसी बड़े पॉलिटिकल तुफान का संकेत तो नहीं दे रहे हैं।

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