New Delhi. संसद के मंगलवार से शुरू होने जा रहे शीतकालीन सत्र में सरकार विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष के वार के साथ-साथ मंदिर मुद्दे पर अपनों के तीखे तेवरों से भी जूझेगी। अयोध्या में भव्य राममंदिर के लिए विहिप के आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खुलकर आ जाने से सरकार की मुसीबत बढ़ गई है। संकेत हैं कि भाजपा नेता कोई फैसला लेने से पहले विधानसभा चुनाव के नतीजों और लोकसभा चुनाव की तैयारी के बीच मंदिर मुद्दे की तासीर को समझने की कोशिश करेंगे।
रामलीला मैदान में संघ और विहिप ने भारी-भीड़ जुटाकर साफ कर दिया है कि वे मंदिर मुद्दे पर अब भी देश को खड़ा कर सकते हैं। हालांकि, यह आंदोलन परोक्ष रूप से चुनावों में भाजपा का मददगार ही बनेगा, लेकिन भाजपा नेता इस बात से सशंकित हैं कि इसके जबाब में कहीं विपक्षी ध्रुवीकरण उसकी मुसीबत न बन जाए। सूत्रों के अनुसार, विधानसभा चुनाव के नतीजे अगर भाजपा की उम्मीद के अनुरूप रहते हैं तो सरकार मंदिर मुद्दे पर आगे बढ़ सकती है।
वहीं, अगर भाजपा को झटका लगता है तो वह लोकसभा चुनाव में मजबूत गठबंधन के साथ जाने के लिए दूसरे विकल्पों पर भी विचार कर सकती है। सूत्रों ने कहा, संसद सत्र में सरकार अपने कामकाज से ज्यादा मुद्दों को धार देने पर ध्यान केंद्रित करेगी।
विपक्ष के तेवर देखते हुए सत्र का सुचारु रूप से चल पाना संभव नहीं दिख रहा है। विपक्ष भी यहां से अपने भावी एजेंडे को मजबूती देगा। ऐसे में भाजपा मंदिर मुद्दे को चुनावी रूप देने की कोशिश करेगी। कानून और अध्यादेश का रास्ता उसका आखिरी विकल्प होगा। हलांकि, वह तभी इस्तेमाल किया जाएगा जब यह तय हो जाएगा कि भाजपा को उसका चुनावी लाभ मिलेगा।
विपक्ष का रुख जानने की कोशिश होगी
दरअसल, संघ के लिए मंदिर मुद्दे से पीछे हट पाना अब संभव नहीं है और भाजपा के लिए संघ जरूरी है। सरकार संसद के भीतर मंदिर पर विपक्ष खासकर कांग्रेस का रुख जानने की कोशिश करेगी और उसकी ‘हां’ या ‘ना’ को लेकर जनता में जाएगी। कांग्रेस की ‘हां’ को भाजपा अपना एजेंडा बताएगी और ‘ना’ होने पर मंदिर निर्माण में बाधा का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ेगी। उसकी कोशिश कांग्रेस के नरम हिंदुत्व के कार्ड को संघ और विहिप के प्रखर हिंदुत्व के तेवरों से मात देना होगा, जिसमें वह खुद सामने नहीं होगी।