उत्तर प्रदेश ।। बसपा या मायावती के लिए भले ही पिछले कुछ साल अच्छे न रहे हों, लेकिन लोकसभा से पहले हुए पांच राज्यों के चुनावों को उनके लिए शुभ संकेत माना जा सकता है। हिंदी भाषी तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसपा के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद अब लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले गठबंधन में सीटों की दावेदारी में बसपा की सपा से कहीं अधिक अहमित हो तो हैरत नहीं।
मायावती हमेशा से कहती आई हैं कि सम्मानजनक स्थिति पर ही समझौता करेंगी। वह एक नहीं कई बार ऐसा बयान दे चुकी हैं। लालू की अगस्त 2017 की रैली हो या ममता बनर्जी की रैली।
वह इन दोनों रैलियों में यह कहकर नहीं गई कि गठबंधन से पहले स्थिति साफ होनी चाहिए। हाल ही में जब दिल्ली में विपक्षी दलों की बैठक हुई तो न तो वह गईं और न ही उनकी पार्टी से कोई प्रतिनिधि ही वहां गया। सियासी रणनीतिकारों का मानना है कि सफलता से आत्मविश्वास से भरीं मायावती गठबंधन में सीटों का दावा और पुरजोर ढंग से कर सकती हैं।
मायावती की कार्यशैली से सभी परिचित हैं। वह अपनी शर्तों पर काम करती हैं। चाहे सपा-बसपा गठबंधन की सरकार रही हो या भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार। मायावती की शर्तों के विपरीत चलने की आदत नहीं है। बसपा अमूमन उपचुनावों में उम्मीदवार नहीं उतारती है इसलिए यूपी में हुए उपचुनावों में उसने सपा का साथ दिया लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए जब गठबंधन की बात आई तो यह बात साफ कर दी कि हैसियत के आधार पर ही सीटें बंटेंगी।
मध्य प्रदेश और राजस्थान में बसपा व सपा ने कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देने की बात की है इससे तो यह साफ होता दिख रहा है कि भविष्य में होने वाले गठबंधन में बसपा, सपा के साथ कांग्रेस भी शामिल हो सकती है। उत्तर प्रदेश में सीटों के बंटवारे पर किसके हिस्से में कितनी सीटें जाएंगी यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि जब भी इस पर बात होगी मायावती तीन राज्यों में मिली सफलता के आधार पर यूपी के बाद कुछ सीटों पर बढ़ा हुआ दावा करें तो कोई हैरत नहीं।