…माफ करना, तो हम भी आप जैसे मरियलों व कायरों के साथ क्यों रहें?

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नज़ीर मलिक।।

कैराना और नूरपुर उपचुनाव को ले कर खबरें बहुत चौकाने वाली हैं। इन दोनों उप-चुनावों में मुस्लिम व दलित बाहुल्य इलाकों की चार सौ ईवीएम अगर सुबह 8 बजे से दोपहर 2 या तीन बजे तक खराब हो जाएं तो भला कौन रोजेदार इसके बाद वहां वोट डालने के लिए रुका रहेगा
इन दोनों क्षेत्रों में ऐसा ही हुआ। रोजेदार दोपहर तक वोट डालने के लिए कतारों में खड़े रहे, इसके बाद मायूस होकर वापस लौट गए। दलित भी निराश होकर लौटने को अंततः मजबूर हो गया।

                                                                                                                               फोटोः प्रतीकात्मक

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सियासत में ये खेल नया नही है। अक्सर दलित, और मुस्लिम बाहुल्य बूथों पर प्रेज़ाइडिंग अफसरों द्वारा बैलेट पेपर देने अथवा अब ईवीएम के दौर में अंगुली में स्याही लगाने में देर कर मतदान को धीमा करने की घटना तो पहले से होती आई हैं, मगर यह नई टैक्टिस अब शुरू हुई है।
सत्ता की लड़ाई में ताक़तवर सत्ता पक्ष की ओर से यह खेल अक्सर खेला जाता रहा है। इसलिए सत्ता पक्ष से शिकायत बेमानी है। असली शिकायत तो विपक्ष की खामोशी से है। क्या कर रहे हैं अजित सिंह, राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश सिंह? अब तक तो दिल्ली को तहरीर चौक बना देना चाहिए था, संघी हिंदुत्व के खौफ से भयभीत सेकुलरिज़्म के ये अलंबरदार अपने बिलों में बैठे हैं।

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ये अगर मुसलमानों, दलितों को वोट दिलाने के लिए आवाज़ नही उठा सकते तो फिर देश के मुस्लमानों, दलितों को क्या गरज़ की इनके लिये खतरा मोल लें। दरअसल ये सभी सेकुलर नेता संघी और भाजपाई हिंदुत्व के नारे से इतना डर गए हैं कि अब अपने हित के लिए आवाज़ नही उठा सकते, अगर मामला दलित या मुस्लिम से सम्बध्द हो। ऐसे में देश के दलितों और मुस्लमानों को चाहिए की मतदान के दिन माया, मुलायम, राहुल को वोट देने के बजाए घर में ही बैठे।

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सुनो माया,अखिलेश और राहुल, तुम उग्र संघी हिंदुत्व मुकाबला, नरम संघी हिंदुत्व से नही कर सकते। तुम्हें नेहरू जी, कांसीराम जी, मुलायम सिंह जी की तरह क्लीयर स्टैंड लेना पड़ेगा। संघी सरकार के ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत (इसमें सपा, बसपा भी हैं) के नारे का एक ही जवाब है ‘संघ मुक्त भारत’। इस देश का करोड़ों सच्चा हिन्दू भी आपके साथ है तो आपको ये नारा देने में परहेज़ क्यों? अगर आप ये नारा नहीं लगा सकते तो हम क्यों रहें आपके साथ? सच तो ये है कि आप वास्तव में या तो खुद कम्युनल हैं या कम्युनल फोर्सेज से डरे हुए हैं। माफ करना, तो हम भी आप जैसे मरियलों व कायरों के साथ क्यों रहें?

                                                                                                                                                   —नज़ीर मालिक की फेसबुक वाल से 

 

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