यहां मरने के बाद नहीं होता अंतिम संस्कार, गिद्धों को खिला दी जाती है लाशें

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अजब-गजब ।। सामान्यता इंसान की मौत के बाद उसके मृत शरीर को या तो जलाया जाता है या फिर दफनाया जाता है, लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां इंसान की मौत के बाद उसके मृत शरीर को काटकर गिद्धों के सामने खाने के लिए डाल दिया जाता है। जैसा की हम सब जानते है की इंसान की मौत के बाद उसके शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है।

सभी धर्म अपनी अपनी परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार करते है। लेकिन संसार में अंतिम संस्कार की कुछ ऐसी परम्पराये भी है जिन्हे सुनकर आप हैरान रह जाओगे। और आज हम बात करने जा रहे है बौद्ध समुदाय में प्रचलित एक बहुत ही अनोखी और हैरान कर देनी वाली अंतिम संस्कार की परंपरा के बारे में।

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तिब्बत के बौद्ध समुदाय के लोग इंसान की मौत के बाद उसके शरीर को काटकर गिद्धों को खाने के लिए डाल देते है। उनका मानना है कि ऐसा करने से इंसान कि आत्मा गिद्धों की उड़ान के साथ सीधे स्वर्ग पहुँच जाती है। इस परंपरा को नियिंगमा परंपरा (स्काई बुरियल) के नाम से जाना जाता है। तो आइये जानते है इस परंपरा के बारे में कि आखिर क्यों ये लोग आज भी इस परंपरा को निभा रहे है।

इस परंपरा में मौत के बाद लाश के छोटे-छोटे टुकड़े करके गिद्धों के सामने परोस दिया जाइंसान की लाश को काटकर गिद्धों को खिलाने की यह परम्परा तिब्बत के लारूंग वैली में रहने वाले लोगो के द्वारा की जाती है। इस परम्परा के अनुसार, बौद्ध भिक्षु और नन मरे हुए इंसान की लाश को काटकर उसके छोटे छोटे टुकड़ो को गिद्धों को खिला देते है। इन लोगो का विश्वास है कि ऐसा करने से मरने वाले कि आत्मा स्वर्ग में चली जाती है।

इन लोगो का ऐसा भी मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस परंपरा को नहीं निभाता है तो मृत व्यक्ति कि आत्मा को शांति नहीं मिल पाती है। लाश के टुकड़ो को गिद्धों को परोसने के बाद मरे हुए आदमी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है तथा “बुक ऑफ़ द डेथ“ भी पढ़ी जाती है। जब बौद्ध भिक्षु इस परम्परा को पूरा करते है तो मरने वाले के परिवार वाले और रिश्तेदार भी वहीं होते है एवं किसी भी अनजान व्यक्ति को पास आने की मनाही है।

इस परम्परा को पूरा करने के लिए इंसान के मृत शरीर को शमशान में ले जाया जाता है। शमशान अधिकांश एक ऊंचाई वाले इलाके में होता है। इसके बाद बौद्ध भिक्षु मृत शरीर की पूजा करते है। फिर शमशान का एक कर्मचारी मृत शरीर के छोटे छोटे टुकड़े करता है तथा दूसरा कर्मचारी उन टुकड़ो को जौ के आटे के घोल में डुबाकर गिद्धों को खाने के लिए डाल देता है।

जब गिद्ध सारा मांस खाकर उड़ जाते है तो उनकी हड्डियों को इकठ्ठा किया जाता है तथा उन्हें पीसकर उनका चूरा किया जाता है। इसके बाद इसे भी जौ के आटे और याक के मक्खन में डुबाकर कौओ और बाजो को खिला दिया जाता है। इस परम्परा को निभाए जाने के दो प्रमुख कारण मने जाते है, एक तो तिब्बत बहुत ऊंचाई पर है जिसकी वजह से वहां पेड़ नहीं पाए जाते और शव को जलाने के लिए लकड़ियों की कमी है।

दूसरा तिब्बत की जमीन इतनी पथरीली है कि वहां 2-3 सेंटी मीटर का भी खड्ढा नहीं खोदा जा सकता। तिब्बत के कुछ लोग मानते है कि शवों को दफ़नाने के बाद भी तो उसको कीड़े मकोड़े ही खाते है। पारसी समुदाय के लोगो में भी मृत शरीर को पक्षियों को खिलाने कि परम्परा पायी जाती है। पर वो लोग शव को जोरास्ट्रियन में ले जाकर रख देते है जहा पक्षी उन्हें अपना भोजन बना लेते है। अंतिम संस्कार की कुछ ऐसी परम्पराये मंगोलिया के कुछ इलाको में भी पायी जाती है। लेकिन तिब्बती लोग जिस प्रकार इस परम्परा को इतने खतरनाक तरीके से अंजाम देते है वो वाकई हैरान कर देनी वाली है।

फोटो- फाइल

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