रोजा तोड़कर हिंदू युवक की जान बचाने को लेकर उलेमा ने दिया चौंकाने वाला बयान, सुनकर हर कोई रह गया हैरान

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उत्तराखंड ।। देहरादून में एक शख्स की जान बचाने के लिए रोज़ेदार बंदे ने डॉक्टर की सलाह पर रोजा तोड़कर उसे आवश्यकता के अनुसार खून दिया था। इस मुस्लिम युवक के इस काम पर “इस्लाम धर्म” के जानकारों का कहना है कि किसी को खून देने के लिए रोजा तोड़ने की आवश्यकता नहीं है। अगर खून देने वाले की जिंदगी पर असर पड़ने के आसार हो तो ऐसे में मसला दूसरा है।

इंटरनेट पर तेजी वायरल हो रहे देहरादून निवासी मो. आरिफ खान द्वारा इंसानियत का धर्म (इस्लाम धर्म) निभाने पर उसे बधाई देने का सिलसिला जारी है। हालांकि, मामला बीते साल का है, जब आरिफ को सूचना मिली कि अजय नामक शख्स को ए-पॉजिटिव ब्लड की जरूरत है और उसे डोनर नहीं मिल रहा है।

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इसके बाद आरिफ ने शख्स के पिता को फोन कर पूछा तो उन्होंने उसे तुरंत बुलाया और बताया कि उसके पुत्र के मात्र पांच हजार प्लेटलेट्स बचे हैं तो वह तुरंत हॉस्पिटल पहुंच गया और चिकित्सिक को बताया कि उसका रोजा है। इस पर डॉक्रों ने उसे कुछ खाने को कहा, जिस पर उसने अजय की जान बचाने के लिए अपना रोजा तोड़कर कुछ खाने के बाद उसे जरूरत का खून दिया।

रोजा कजा कर आरिफ द्वारा शख्स की जान बचाने की खबर जब इंटरनेट पर चली तो लोगों ने मुफ्ती-ए-कराम से पूछा कि क्या ऐसा किया जा सकता है। इस पर मुफ्ती अहमद गोड ने भी कहा की रोजा हमें कुर्बानी देना सिखाता है और शरीयत भी इस चीज की इजाजत देती है कि अगर किसी की जान बच रही हो तो रोजा तोड़कर पहले खुन दे सकते हैं। खुन की जरूरत चाहे किसी को भी हो, चाहे वो किसी भी धर्म का हो।

फोटो- फाइल

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