लखनऊ।। राज्यसभा चुनाव में भाजपा यूपी में भले ही 9वीं सीट जीत गई है, लेकिन उसकी ये जीत उसके लिये बड़ी मुसीबत बन सकती है। ऐसा लग रहा है कि बीएसपी प्रत्याशी भीमराव अंबेडकर की हार को मायावती ने इसे अब अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है और इसका बदला लेने के लिये वह समाजवादी पार्टी के साथ संबंध और भी मजबूत करने से पीछे नहीं हटेंगी। इस बात के कयास पहले भी लगाये जा रहे थे कि राज्यसभा चुनाव में हार से क्या एसपी और बीएसपी की नई दोस्ती पर असर पड़ेगा?
बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने नतीजा आने के बाद ही मीडिया से बातचीत में कहा था कि उनकी पार्टी की ओर से सपा और कांग्रेस से कोई शिकायत नहीं है। दोनों ही दलों ने अपने वोट बीएसपी प्रत्याशी को दिलवाये हैं, लेकिन भाजपा एक दलित को हराना चाहती थी। शनिवार दोपहर के बाद मायावती ने एक कदम आगे बढ़ते हुये कहा कि राज्यसभा चुनाव में जो कुछ भी हुआ उसका कोई असर सपा-बसपा के गठबंधन पर नहीं पड़ेगा। ये आगे भी जारी रहेगा।
बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने कहा, भाजपा ने चुनाव में धनबल और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। भाजपा ने ये सब इसलिये किया ताकि सपा और बसपा के बीच एक बार फिर से दूरी बने। मायावती ने कहा, “मैं साफ कर देना चाहती हूँ कि सपा-बसपा का मेल अटूट है। भाजपा गेस्ट हाउस कांड के बहाने हमारे और अखिलेश के बीच दरार पैदा करना चाहती है लेकिन ऐसा नहीं होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि गेस्ट हाउस कांड के समय जो पुलिस अधिकारी राजधानी में तैनात था उसे भारतीय जनता पार्टी ने वर्तमान में प्रदेश पुलिस का मुखिया डीजीपी बना दिया है।
दोनों पार्टियों के गठबंधन से प्रदेश की राजनीतिक समीकरण और वोटों के अंकगणित पर नजर डालें तो यह भाजपा के लिहाज से बिलकुल ठीक नहीं है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने लगभग 41 फीसदी वोट बटोरे और 300 से ज्यादा सीटें जीतीं। यह उसका अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। वहीं सबसे खराब प्रदर्शन करते हुये एसपी को 28 फीसदी और बीएसपी को 22 फीसदी के करीब वोट मिले। अगर दोनों ही पार्टियों के वोटों को मिला दिया जाये तो 50 फीसदी हो जाता है। मतलब भाजपा के वोट से करीब 9 फीसदी ज्यादा।