इस तरीके से मानव कर सकता है भगवान के साक्षात दर्शन !

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धर्म डेस्क. श्री श्री आनन्दमूर्ति के प्रभात संगीत और उनके आध्यात्मिक दर्शन के बीच अटूट संबंध है। उनका दर्शन वेदांत और वैष्णव दर्शन के नजदीक होने के कारण भारतीय भक्ति तत्व परंपरा से मिलता-जुलता है। दूसरे रूप में उनकी धार्मिक काव्य रचना जीवात्मा को परमात्मा के साथ मिलाने का काम करती है, भौतिकता का आध्यात्मिकता के साथ और मानवता का दिव्य पुरुष के साथ सबंध स्थापित करती है। प्रभात संगीत का यह महान कार्य हमारे अंदर आत्म-निवेदन और पूर्ण समर्पण की भावना को उजागर करता है।

दर्शन

कोई भी भक्ति तत्व दर्शन आत्म-निवेदन और पूर्ण समर्पण की भावना के बिना संभव नहीं हो सकता। हमारे प्राचीन दर्शन और साहित्य में यह विचार अनेक घटनाओं के उदाहरण द्वारा व्यक्त हुआ है। उपनिषद, भागवत पुराण, महाभारत आदि तमाम प्रमुख ग्रंथों में यह चीज दिखती है। भक्ति तत्व काव्य रचना के बंधनों को श्री श्री आनन्दमूर्ति ने सामाजिक और आध्यात्मिक समर्पण के उच्च स्तर तक आगे बढ़ाया। इसे जीवन का लक्ष्य बनाकर मानवतावाद के छोटे आकार के साथ प्रेम शब्द को जोड़कर उसे सार्वभौम रूप में परिवर्तित किया और इसे नव्य-मानवतावाद की संज्ञा दी। उन्होंने भारत में भक्ति काव्य रचना से जुड़े विचारों, भावों, कल्पनाओं और संकेतों के सभी पुराने लेखों को अपने भक्ति काव्य रचना के साथ एक सूत्र में जोड़कर उन्हें उच्च स्तर तक पहुंचाया। उनकी भक्ति काव्य रचना में उच्च स्तर के कवित्व भाव और स्पष्टता दिखाई पड़ती है। उनकी भक्ति काव्य रचना में एक विशेष आकृति, एक प्रकार की गहराई और व्यापकता है।

मनुष्य का परम लक्ष्य है परमसत्ता परमेश्वर को पाना। यह विचार हम वेद, उपनिषद, भागवत पुराण, गीता और हमारी भूमि पर जितनी भी रचनाएं हैं, उन सबमें पाते हैं। भारतीय भक्ति काव्य रचना निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण पर टिकी हुई है। इसे उच्च स्तर तक लाकर सिर्फ मनुष्य की सेवा नहीं, बल्कि अपने आस-पास घिरे सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और निर्जीव वस्तुओं की सेवा को प्राथमिकता दी गई है, जो ‘नव्य-मानवतावाद’ कहलाता है। यह मानवतावाद सिर्फ मानव कल्याण पर आधारित है।

क्या कभी सोचा था कि मनुष्य बिना पर्यावरण संतुलन के रह सकता है या विकास कर सकता है? यह उत्कृष्ट विचार हम उन महान दार्शनिक कवि की अनूठी काव्य रचना ‘नव्य-मानवतावाद’ में पाते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेख किया जा सकता है कि उनकी काव्य रचना में सिर्फ अध्यात्म ही नहीं बल्कि मानवतावाद और समाजवाद भी है। इनके दर्शन में समन्वयवाद (संश्लेषण) भी जुड़ा है। सभी जीवों के अंदर ईश्वर है। ‘नव्य-मानवतावाद’ दर्शन के माध्यम से विशाल काव्यात्मक कार्यों को प्रस्तुत किया गया है। उनके भक्ति काव्य रचना और मानवतावाद दर्शन की व्यापकता काफी उच्च स्तर की है, जो सभी के कल्याण के बारे में सोचते हैं।

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