आत्म शुद्धि का मार्ग है तप – मुनिश्री निकलंक सागर महाराज

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धर्म, ।। भोपाल जैन धर्मावलंबी 10 दिवसीय पर्वताधिराज पर्युषण पर्व में तप, त्याग और संयम की साधना के साथ 10 धर्मों की आराधना में लीन हैं। आज शहर के जैन मंदिरों में भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक सम्पूर्ण जगत में शांति की कामना को लेकर शांतिधारा के साथ उत्तम तप धर्म की आराधना हुई हैं।

चैक जैन धर्मशाला में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनिश्री प्रसाद सागर महाराज, मुनिश्री शैल सागर महाराज, मुनिश्री निकलंक सागर महाराज के सानिध्य में अनेकों श्रद्धालुओं ने मूल नायक भगवान आदिनाथ का अभिषेक और मंत्रोच्चारित शांतिधारा के साथ संगीतमय स्वर लहरियों के साथ भगवान जिनेन्द्र के अनंत गुणों की वंदना की।

मुनिश्री निकलंक सागर महाराज ने तप धर्म का महत्व बताते हुए कहा आध्यात्म, तप और साधना से विश्व में जैन संस्कृति अग्रणी है।

दो तरह का मार्ग है एक साधन सम्पन्न, सुख-सुविधाओं, भाग विलासता का और दूसरा साधना का मार्ग है, जिसमें भारत की संस्कृति की इतिहास रहा हैं साधना के मार्ग में आध्यात्म, तप और साधना को निरूपित किया गया है। भारतीय संस्कृति में भोग को न नहीं योग और त्याग को सम्मान मिला है। मुनिश्री ने कहा तप और ध्यान जीवन के आवश्यक कर्तव्य है, जो तपा जाये सो तप है।

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