कोरोना संकट के बीच तीसरे विश्वयुद्ध के आसार प्रबल

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वैश्विक महामारी कोरोना को तमाम विचारक तीसरा विश्वयुद्ध करार दे रहे हैं। परिस्थितियां भी प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों सदृश्य ही हैं। प्रथम विश्वयुद्ध से पहले फ्लू फैला था और दूसरे विश्वयुद्ध से पहले प्लेग। दोनों महामारियों में अपार जन-धन की हानि हुई थी। उस दौरान दुनिया दो गुटों में बंट गई थी। वर्तमान में विश्व कोरोना महामारी से त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस महामारी से लगभग दो लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और दुनिया महामंदी की चपेट में है। कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तलवारें खिंच गईं हैं। दोनों देशों के झंडे तले दुनिया दो खेमों में बंटने लगी है। विश्वयुद्ध की आहटें साफ़ सुनाई देने लगी है।

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उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा कहर अमेरिका और यूरोप पर बरस रहा है। कोरोना वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अमेरिका ने कहा कि चीन ने उसपर कोरोना वायरस से हमला किया है। वो उसे सबक सिखाएगा। वो चुप नहीं बैठेगा, हर चीज का हिसाब लेगा। ब्रिटेन भी चीन को सख्त चेतावनी दी है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि वह सख्त कदम उठाने से भी नहीं हिचकेंगे और चीजें बेहतर होने से पहले और खराब होंगी।

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इधर कुछ समय से यूरोप और अमेरिका की हनक खत्म होती जा रही है। वे कोरोना की वजह से घुटने टेकने की कगार पर पहुंच चुके हैं। दुनिया पर आर्थिक नियंत्रण रखने वाले फ़्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और यूरोप समेत पश्चिम के तमाम देश कोरोना वायरस की चपेट में आकर तबाह होते जा रहे हैं। जो वर्चस्व पहले यूरोपियन देशों और अमेरिका के हाथ में रहता था, वह चीन के हाथों में जाता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में कोरोना संकट खत्म होने के बाद अमेरिका और यूरोप कभी भी चीन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं जिसकी परिणति तीसरे विश्वयुद्ध के रूप में होनी तय है।

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उधर चीन ने विश्व बैंक को 300 करोड़ डॉलर का अनुदान देकर अपनी आर्थिक ताकत का प्रदर्शन किया है। इस दौरान वह अपनी सैन्य शक्ति का भी इस्तेमाल खुलकर कर रहा है। साउथ चाइना सी में वह सैन्य अभ्यास कर रहा है। कोरोना संकट का फायदा उठाते हुए चीन इस इलाके पर अपना कब्जा मजबूत करता जा रहा है। हांगकांग की स्वायतता पर भी लगातार हमले कर रहा है। खबरों के मुताबिक़ विगत दिनों चीन ने परमाणु परीक्षण भी किया है। इसी तरह चीनअपने तेल भंडार में भी भारी इजाफा कर रहा है।

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इन परिस्थितयों में साफतौर से दुनिया दो ताकतों में बंट चुकी है। अमेरिका के साथ फ्रांस और ब्रिटेन आदि देश खुलकर चीन के खिलाफ खड़े हो गए हैं। उधर रूस, सीरिया; ईरान और पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देश चीन के साथ खड़े हैं। जहां तक भारत की बात है तो वह पहले रूस का करीबी माना जाता था; लेकिन बदली हुई परिस्थितयों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती के साथ ही हार्ट द्वारा अमेरिका को हैड्रोक्लोरोक्वीन दवा की आपूर्ति से भारत को अमेरिकी लाबी के साथ देखा जा रहा है।

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इस तरह तीसरे विश्वयुद्ध के आसार प्रबल हैं। विश्व में शांति एवं सहयोग के लिए गठित संयुक्त राष्ट्र संघ कमजोर हो चूका है। उसकी न तो अमेरिका सोएगा और न ही चीन। गुटनिरपेक्ष देशों का संगठन पहले ही आस्तित्व खो चूका है। महायुद्ध को रोकने के लिए कोई भी संगठन फ़िलहाल नजर नहीं आ रहा है। इन विषम परिस्थितियों में बुद्धिजीवियों; समाजसेवियों; साहित्यकारों और मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

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