कहते हैं कोई हीरो नहीं होता, कोई हीरो बन भी नहीं सकता। ये तो हालात होते हैं जो किसी को हीरो या फिर किसी को विलेन के तौर पर गढ़ देते हैं। भूपेश बघेल भी इन्हीं हालातों की देन है। आज हम आपको बताएंगे छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल की कहानी, जिन्होंने ना सिर्फ पार्टी को छत्तीसगढ़ में फर्श से अर्श तक पहुंचाया बल्कि देश के मजबूत नेता बनकर उभरे।
तो बात वहीं 2013 की है जब कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था। हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की लीडरशिप का एक हिस्सा साफ हो गया। बड़े नाम के तौर पर बचे थे केवल अजीत जोगी। लेकिन इस हमले के बाद जोगी अपनी साख गवां बैठे थे। ऐसे में कमान आ गई तीखे तेवर रखने वाले शख्स के पास नाम था भूपेश बघेल। शुद्ध तौर पर संगठन के आदमी तीखे तेवर, जनता में पकड़ और संगठन को साधने वाला दिमाग। किसान परिवार से आने वाले बघेल 25 साल की उम्र में अपने दम पर राजनीति में आए।
साल था सन् 1986। दुर्ग के रहने वाले थे भूपेश बघेल तो वहीं से ही सियासत की शुरुआत भी की। दुर्ग उस जमाने में कांग्रेस के दिग्गज नेता चंदूलाल चंद्राकर का गढ़ हुआ करता था। ऐसे में बघेल ने सियासत का ककहरा चंद्राकर से ही सीखा है।
बता दें कि भूपेश बघेल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके राजनीतिक गुरु चंद्राकर ने उन्हें तीन सबक सिखाए थे, जो हमेशा उनके काम आएंगे। पहला सबक कभी मीडिया के जरिए सियासत चमकाने की कोशिश नहीं करना। दूसरा सबक घर चलाने के लिए बाप दादा के धंधे पर ही निर्भर रहना और सियासत पेट भराई का जरिया मत बनाना। और तीसरा सबक आलाकमान के आदेश के खिलाफ कभी भी बगावत नहीं करना।
भतीजे से हारे थे भुपेश बघेल
अब बात कर लेते हैं हार और जीत की। भूपेश बघेल के बारे में जाना जाता है कि उनके भतीजे के हाथों भी उन्हें पहली हार मिली थी। बता दें कि वो साल आया जब भूपेश बघेल ने पहला चुनाव जीता। साल 1993 में सीट थी दुर्ग जिले की पाटन सीट से लगातार जीतते रहे थे सिवाय साल 2008 के और इस साल वो अपने भतीजे और बीजेपी उम्मीदवार विजय बघेल से हार गए थे।
ऐसा रहा राजनीतिक सफर
राजनीतिक सफर की बात करें तो भूपेश बघेल मध्य प्रदेश के दिग्विजय सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। 1990 से 1994 तक जिला युवा कांग्रेस कमिटी दुर्ग के भी अध्यक्ष रहे। फोर्स फाइव में कांग्रेस के उपाध्यक्ष चुने गए। नाइंटी नाइन में मध्यप्रदेश सरकार में परिवहन मंत्री रहे। साल दो हज़ार में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना और कांग्रेस की सरकार बनी तब जोगी सरकार में भी वो कैबिनेट मंत्री रहे। साल 2013 में पाटन से जीत दर्ज की और फिर 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।
अब बात करेंगे उस संजीवनी की जो भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को दी और वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को संजीवनी बूटी देकर दुबारा से जीवित किया। साल दो हज़ार 14 में जब कांग्रेस की कमान बघेल के हाथ में आई वो बुरी तरह से जंग खाई हुई थी। 15 साल सत्ता में बाहर रहे कांग्रेसी बिखर चुके थे, जिन्हें समेटने के लिए भूपेश बघेल ने सबसे पहले जमीन का रास्ता लिया। कस्बे और गांव के दौरे शुरू किए। पुराने कार्यकर्ताओं को मनाया।
वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस के लिए ये दवा साबित हुई और सबसे असरदार दवा साबित हुई। 2016 से कांग्रेस का काम दिखाई देने लगा। कांग्रेस के विरोध के चलते बीजेपी सरकार को अपने कदम कई जगह पर पीछे खींचने पड़े।
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