
Up Kiran, Digital Desk: जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ किताबों और सेमिनारों का विषय नहीं रह गया है, यह हमारे दरवाजों पर दस्तक दे रहा है। कहीं बेमौसम बरसात तो कहीं सूखा, कहीं बाढ़ तो कहीं जानलेवा गर्मी, प्रकृति का बदलता मिजाज अब हर किसी को डराने लगा है। इस गंभीर खतरे से निपटने के लिए अब एक बड़ी और साहसिक पहल की मांग उठी है - हर राज्य अपने कुल बजट का 10% हिस्सा 'ग्रीन बजट' के रूप में अलग रखे।
यह महत्वपूर्ण मांग आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव की विशेष सचिव, लीना सामरिया, ने एक राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान उठाई। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अब समय आ गया है कि हम पर्यावरण की रक्षा और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए सिर्फ बातें न करें, बल्कि ठोस वित्तीय कदम उठाएं।
क्या है 'ग्रीन बजट' का मतलब?
'ग्रीन बजट' का मतलब है कि सरकार अपने कुल बजट का एक तय हिस्सा (यहां 10%) सिर्फ और सिर्फ पर्यावरण से जुड़ी योजनाओं पर खर्च करेगी। इस पैसे का इस्तेमाल इन कामों में किया जाएगा:
जंगल लगाना और बचाना: बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना और मौजूदा जंगलों को कटने से बचाना।
प्रदूषण नियंत्रण: हवा और पानी को साफ रखने के लिए नई तकनीकें अपनाना और सख्त नियम लागू करना।
सस्टेनेबल खेती: किसानों को ऐसी तकनीकें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना जिससे पानी की बचत हो और केमिकल का इस्तेमाल कम हो।
हरित ऊर्जा को बढ़ावा: सोलर और पवन ऊर्जा जैसे विकल्पों को सस्ता और सुलभ बनाना।
जलवायु परिवर्तन से मुकाबला: बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं से निपटने के लिए पहले से तैयारी करना।
सामरिया ने कहा कि आंध्र प्रदेश पहले से ही इस दिशा में कई कदम उठा रहा है, लेकिन अगर हर राज्य इस तरह की वित्तीय प्रतिबद्धता दिखाए, तो भारत जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन सकता है।
यह मांग सिर्फ एक सरकारी अधिकारी की नहीं, बल्कि समय की पुकार है। अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और स्वस्थ धरती देनी है, तो बजट में पर्यावरण के लिए जगह बनाना अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि हमारी सबसे बड़ी जरूरत है।
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