बच्चों के जीवन की आधारशिला होती है शुरूआत का 1000 दिन

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कुशीनगर ।। मातृ, शिशु एवं छोटे बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( एम्स) गोरखपुर और अलाइव एंड थ्राइव के सहयोग से जिला चिकित्सालय सभागार में दो दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया।

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प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. एसके वर्मा ने किया। दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में संयुक्त जिला चिकित्सालय एवं कसया सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र( सीएचसी) के चिकित्सकों और स्टाफ नर्सेज को मातृ, नवजात एवं शिशु पोषण सेवाओं की गुणवत्ता के सुधार के संबंध प्रशिक्षण दिया गया।

इस मौके पर एलाइव एंड थ्राइव संस्था के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि बच्चों को कुपोषण से बचाना है तो उनके गर्भ में आने के साथ ही बचाव शुरू करना जरूरी है। बच्चे के 1000 दिन उसके पूरे जीवन के स्वास्थ्य की रूपरेखा तय करते हैं। इस दौरान हुआ स्वास्थ्यगत नुकसान पूरे जीवन चक्र पर असर डालता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से जानकारी मिलती है कि मां को कैसा भोजन दें, जिससे कि दो वर्ष तक मां और नवजात दोनों के लिए पर्याप्त पोषण मिलता रहे।

एम्स गोरखपुर के स्त्री एवं प्रसूति विभाग की डाॅ. प्रीति प्रियदर्शिनी ने गर्भावस्था के दौरान पोषण आहार के महत्व के बारे में भी जानकारी देते हुए बताया कि गर्भवती का आहार ऐसा होना चाहिए कि जिसमें सभी पोषक तत्व मौजूद हों। मसलन हरी साग-सब्जियां, फल, दूध, पनीर, अंडा आदि। आहार में कच्चे फल व सब्जियों के अलावा नट्स एवं सीड्स भी होने चाहिए। गर्भवती को पर्याप्त आहार मिलना चाहिए तथा सामान्य दिनों की तुलना में आहार की बारम्बरता बढ़ानी चाहिए।

एम्स गोरखपुर के एसोसिएट प्रोफेसर (कम्यूनिटी एंड फेमिली मेडिसिन विभाग) डाॅ. अनिल कोपार्कर ने बताया कि जन्म के तुरंत बाद शिशु को मां का गाढ़ा पीला दूध जरूर पिलाया जाए, और छह महीने तक शिशु को सिर्फ और सिर्फ मां का दूध ही दिया जाना चाहिए । छह माह तक पानी या अन्य कोई पेय पदार्थ या खाने की चीज कदापि नहीं देना है ।

मां का दूध सुपाच्य होता है और इससे पेट की गड़बड़ियों की आशंका नहीं होती है। इससे मां-बच्चे के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है । छह महीने से दो साल की उम्र तक के बच्चे को मां के दूध के साथ-साथ घर का बना ऊपरी आहार भी देना है।

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एम्स गोरखपुर के ही एसोसिएट प्रोसेसर ( कम्यूनिटी एंड फेमिली मेडिसिन विभाग) प्रदीप खार्या ने बताया कि जब बच्चा छह महीने का हो जाता है तो समुचित विकास के लिए प्रोटीन के अलावा कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है।

छह से नौ माह के बच्चे को माँ के दूध के साथ दलिया, आटे या सूजी का हलवा, सूजी की खीर, मसला हुआ केला, मसला हुआ दाल – चावल, खिचड़ी एक चम्मच घी और तेल अवश्य दें। इसके साथ ही मौसमी फल भी दें । जैसे जैसे बच्चा बड़ा हो खाने की मात्रा बढ़ाते रहें। नौ माह की आयु के बाद बच्चे को स्वयं खाना खाने को दें। पहले तो वह खाने को गिरायेगा लेकिन बाद में वह धीरे-धीरे खाने लगेगा।

एम्स गोरखपुर के ही एसोसिएट प्रोसेसर ( कम्यूनिटी एंड फेमिली मेडिसिन विभाग) डाॅ. रामशंकर रथ ने प्रशिक्षणार्थी को गुणवत्ता बढ़ाने की विस्तृत जानकारी दिया। लोगों ने प्रशिक्षण में प्राप्त जानकारी से लोगों को लाभान्वित कराने की बात कही। प्रशिक्षण के समापन अवसर पर जिला क्वालिटी एश्योरेंस कंसल्टेंट डाॅ.रोहित कुमार, मातृत्व स्वास्थ्य के कंसल्टेंट डाॅ.रितेश ने कहा कि यह प्रशिक्षण लाभकारी है, इस तरह की प्रशिक्षण सभी स्वास्थ्य कर्मियों को देने की आवश्यकता है।

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