Up Kiran, Digital Desk: 2024 के लोकसभा चुनाव में जिन बड़े नेताओं को लगा था कि बस थोड़ा सा फर्क था और विधानसभा चुनाव में बाजी पलट जाएगी, उनमें से ज्यादातर की उम्मीदें एक बार फिर टूट गईं। जो बारह हाई प्रोफाइल चेहरे लोकसभा में मामूली या मध्यम मार्जिन से हारे थे, वे विधानसभा में भी जीत की मिठास नहीं चख पाए। इनमें सात नेता राजद से, तीन जदयू से, एक कांग्रेस से और एक पीआई से जुड़े हुए थे। उल्टा सात अन्य नेताओं ने ठीक यही मौका चुना और लोकसभा की हार को विधानसभा में शानदार जीत में बदल दिया।
यह नतीजे बिहार की राजनीति का पुराना सबक फिर दोहरा रहे हैं। स्थानीय समीकरण, जातीय गणित और वोटर का मूड एक सीट से दूसरी सीट तक कितनी जल्दी पलट जाता है।
कुछ चौंकाने वाले नाम और उनकी कहानी इस प्रकार है।
अररिया लोकसभा से राजद के शाहनवाज आलम सिर्फ बीस हजार वोटों से पीछे रह गए थे। लगा था जोकीहाट विधानसभा में वे आसानी से हिसाब बराबर कर लेंगे। हुआ इसके उलट। वे चौथे नंबर पर खिसक गए और हार का अंतर बढ़कर चौवन हजार वोटों से ज्यादा हो गया।
पूर्णिया लोकसभा में तीसरे स्थान पर रहीं राजद की बीमा भारती को रूपौली में और बड़ा झटका लगा। सात तिहाई हजार वोटों से वे धराशायी हो गईं। जदयू के संतोष कुशवाहा ने लोकसभा में हार के बाद पार्टी बदल ली और राजद के टिकट पर धमदाहा लड़े। नतीजा वही पुराना। पचपन हजार वोटों से हार।
वाल्मीकिनगर में लोकसभा की हार एक लाख वोटों की थी। दीपक यादव को लगा था नरकटियागंज में कुछ तो सुधार होगा। वहां भी छब्बे हजार से ज्यादा की शिकस्त मिली। सुपौल से भारी अंतर से हारे चंद्रहास चौपाल सिंहेश्वर में डटे रहे, लेकिन सिर्फ तीन हजार वोटों से भी जीत नहीं बचा पाए।
बांका से हारे राजद के जयप्रकाश नारायण यादव झाझा पहुंचे तो चार हजार से ज्यादा वोटों से मुंह की खानी पड़ी। दरभंगा लोकसभा में डेढ़ लाख से ज्यादा की हार झेलने वाले ललित कुमार यादव को दरभंगा ग्रामीण में अट्ठारह हजार वोटों से हार मिली। शिवहर की पूर्व उम्मीदवार रितु जायसवाल ने परिहार से निर्दलीय आजमाई, लेकिन सत्रह हजार वोटों से पीछे रह गईं।
हालांकि सबकी किस्मत एक जैसी नहीं रही। जहानाबाद लोकसभा में डेढ़ लाख के करीब पिछड़ने वाले चंदेश्वर चंद्रवंशी विधानसभा में सिर्फ सात सौ तिरानवे वोटों से हारे। यानी जीत से महज एक कदम दूर रह गए। यह हार भी कई मायनों में जीत जैसी लगती है।
दूसरी तरफ कुछ नेताओं ने ठीक यही हार को सीढ़ी बनाया और विधानसभा में धमाकेदार वापसी की। नाम अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन उनकी जीत यह बता रही है कि बिहार का वोटर जिसे चाहे, पल में राजा बना दे और पल में रंक।
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