5 अक्टूबर को 15 लाख लोग करेंगे सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, जानें क्यों

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उत्तर प्रदेश॥ पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव के विरोध में प्रदेश के बिजली कर्मचारियों को देश भर के बिजली कर्मचारियों का समर्थन मिला है। देश के 15 लाख बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों के निजीकरण के विरुद्ध संघर्ष में 05 अक्टूबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन करेंगे।

Protest

बिजली कर्मचारियों वअभियंताओं की राष्ट्रीय समन्वय समिति नेशनल को-आर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लाइज एंड इंजिनियर्स (एनसीसीओईईई) की ऑनलाइन बैठक में यह निर्णय किया गया है। संगठन के मुताबिक 5 अक्टूबर को जब उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों का पूरे दिन का कार्य बहिष्कार प्रारंभ होगा तब उनके समर्थन में देश के सभी प्रांतों के 15 लाख बिजली कर्मी विरोध प्रदर्शन व विरोध सभायें करेंगे और उप्र के साथ एकजुटता का परिचय देंगे।

एनसीसीओईईई ने यह भी कहा है कि यदि उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों को गिरफ्तार किया गया और दमन किया गया तो देश के अन्य प्रांतों के बिजली कर्मी मूक दर्शक नहीं रहेंगे और उत्तर प्रदेश के समर्थन में राष्ट्रव्यापी आंदोलन प्रारंभ कर दिया जाएगा। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के आह्वान पर आज प्रदेश के सभी ऊर्जा निगम निगमों के तमाम बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों व अभियंताओं ने शहीद ए आजम भगत सिंह के जन्म दिन पर राजधानी लखनऊ सहित सभी 75 जनपदों और परियोजनाओं पर मशाल जुलूस निकालकर सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने का संकल्प लिया।

राजधानी लखनऊ में राणा प्रताप मार्ग स्थित हाइडिल फील्ड हॉस्टल से मशाल जुलूस प्रारम्भ होकर हजरतगंज में जीपीओ स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा तक गया। फील्ड होस्टल पर हुई सभा को संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने सम्बोधित किया।

पदाधिकारियों ने बताया कि बिजली कर्मी 29 सितम्बर से 3 घंटे का कार्य बहिष्कार करेंगे। यदि निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त न किया गया तो 05 अक्टूबर से बिजली कर्मी पूरे दिन का कार्य बहिष्कार करेंगे। संघर्ष समिति ने कहा कि निजी कम्पनी मुनाफे के लिए काम करती है। निजी कम्पनी अधिक राजस्व वाले वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं को प्राथमिकता पर बिजली देगी जो ग्रेटर नोएडा और आगरा में हो रहा है। निजी कम्पनी लागत से कम मूल्य पर किसी उपभोक्ता को बिजली नहीं देगी।

अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को पॉवर कारपोरेशन घाटा उठाकर बिजली देता है, जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है। अब निजीकरण के बाद स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।

उत्तर प्रदेश में बिजली की लागत का औसत 07.90 रुपये प्रति यूनिट है और निजी कम्पनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने के बाद 09.50 रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी। इस प्रकार एक किसान को लगभग 8000 रुपये प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 8000 से 10000 रुपये प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा।

निजी वितरण कम्पनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार पूर्वांचल में तीन वर्ष में ट्यूबवेल के फीडर अलग कर ट्यूबवेल को सौर ऊर्जा से जोड़ देने की योजना है। अभी सरकारी कम्पनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है। निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार सरकार निजी कम्पनियों को पांच साल से सात साल तक परिचालन व अनुरक्षण के लिए आवश्यक धनराशि भी देगी। साथ ही निजी कम्पनियों को विद्युत वितरण सौंपने के समय तक के सभी घाटे का उत्तरदायित्व पॉवर कारपोरेशन अपने ऊपर ले लेगा जिससे निजी कंपनियों को क्लीन स्लेट मिले।

 

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