Up Kiran, Digital Desk: बिजनू बिजनाड गांव में उस रात कुछ ऐसा हुआ जो जौनसार-बावर के 359 गांवों में कभी नहीं देखा गया। बूढ़ी दीवाली के अंतिम दिन दो काठ के हाथी सजे। एक पर बैठे पुराने स्याणा तो दूसरे पर नए स्याणा सुनील कुमार। 35 दलित परिवारों ने पहली बार अपनी मर्जी से अपना अलग मुखिया चुना और उसे पूरे गांव में घुमाया। यह सिर्फ एक चुनाव नहीं था बल्कि सदियों की गुलामी की जंजीर तोड़ने की घोषणा थी।
पुलिस की मौजूदगी में टूटी परंपरा
इस नई शुरुआत के लिए दलित परिवारों को पुलिस और प्रशासन की सुरक्षा लेनी पड़ी। चकराता के एसडीएम और बीडीओ खुद मौके पर तैनात रहे। ग्रामीणों ने पहले डीएम से गुहार लगाई थी कि उनकी सुरक्षा की जाए क्योंकि ऊंची जाति के कुछ लोग इस बदलाव को पचा नहीं पा रहे थे। सामाजिक कार्यकर्ता दौलत कुंवर कहती हैं कि यह संघर्ष सालों से चल रहा था। आज जीत हुई है।
दो स्याणा एक साथ – पहली बार
जौनसार क्षेत्र में ब्रिटिश राज ने स्याणा व्यवस्था शुरू की थी। उस समय से नियम था कि जहां राजपूत और दलित साथ रहते हैं वहां सिर्फ एक स्याणा होगा और वह हमेशा सवर्ण परिवार से ही चुना जाएगा। इस बार 13 परिवारों ने पुरानी परंपरा निभाई तो 35 दलित परिवारों ने अलग होकर अपना स्याणा बना लिया। नतीजा – गांव में अब दो मुखिया हैं। सदर स्याणा शूरवीर सिंह चौहान ने भी माना कि कानूनन इसमें कोई रोक नहीं है।
स्याणा के अधिकार और इतिहास
स्याणा गांव का पारंपरिक सरदार होता है। सामाजिक झगड़ों का फैसला करना, रीति-रिवाज निभाना, संस्कृति की रखवाली करना – ये सब उसके जिम्मे होते हैं। अंग्रेजों के जमाने में ये राजस्व वसूली में भी मदद करते थे। अब दलितों ने साबित कर दिया कि यह पद सिर्फ अमीरी या जाति का नहीं बल्कि हक का भी हो सकता है।
पूरे क्षेत्र में आने वाली है बदलाव की लहर
बिजनू बिजनाड में जो हुआ वह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं रहने वाली। कार्यकर्ताओं का दावा है कि जल्द ही दूसरे गांवों के दलित भी अपने अलग स्याणा चुनेंगे। सदियों पुरानी ब्रिटिश व्यवस्था अब टूटने की कगार पर है। एक छोटे से गांव ने पूरे जौनसार-बावर को बराबरी का नया सबक पढ़ा दिया है।

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