img

Up Kiran, Digital Desk: झारखंड के हजारीबाग में एक ऐसी परंपरा है जो 400 सालों से बिना रुके चली आ रही है। यह है नरसिंह मंदिर का प्रसिद्ध कैतारी मेला, जिसे लोग 'गन्ना मेला' के नाम से भी जानते हैं। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाला यह मेला सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि लोगों की गहरी आस्था और सदियों पुरानी संस्कृति का प्रतीक है।

क्या है इस मेले की कहानी?

इस मेले की जड़ें करीब 400 साल पुरानी मानी जाती हैं। कहा जाता है कि उस समय यहाँ के राजा-महाराजा भगवान नरसिंह की पूजा के बाद इसी दिन अपनी प्रजा से मिलते थे और राज्य की खुशहाली पर चर्चा करते थे। धीरे-धीरे यह एक परंपरा बन गई और इसने एक बड़े मेले का रूप ले लिया।

इस मेले का सबसे खास हिस्सा है गन्ने का बिकना। दूर-दूर से किसान अपने खेतों में उगे सबसे अच्छे और मीठे गन्ने लेकर यहाँ आते हैं। यहाँ आने वाले लोग भगवान नरसिंह को गन्ना चढ़ाते हैं और फिर प्रसाद के रूप में इसे अपने घर ले जाते हैं। मान्यता है कि भगवान को चढ़ाया गया गन्ना घर में सुख और समृद्धि लाता है।

सिर्फ एक मेला नहीं, लोगों का जुड़ाव है

यह मेला सिर्फ गन्ना खरीदने-बेचने की जगह नहीं है। यह लोगों के आपसी जुड़ाव का भी केंद्र है। गाँव के लोग, जो काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं, इस मेले के बहाने घर लौटते हैं। पुराने दोस्त मिलते हैं, परिवार एक साथ समय बिताता है और बच्चे इस मेले की रौनक में खो जाते हैं।

मेले में आपको पारंपरिक मिठाइयों, खिलौनों और स्थानीय कलाकृतियों की दुकानें भी मिलेंगी। बच्चों के लिए झूले और मनोरंजन के कई साधन होते हैं, जो इस मेले को और भी खास बना देते हैं। यह एक ऐसा अनुभव है जहाँ परंपरा, आस्था और आज की दुनिया एक साथ मिलती हैं।

आज भी, जब चीजें तेजी से बदल रही हैं, हजारीबाग के लोगों ने अपनी इस विरासत को जिंदा रखा है। यह 'गन्ना मेला' इस बात का सबूत है कि कुछ परंपराएं समय के साथ और भी गहरी और मीठी होती जाती हैं।