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Up Kiran, Digital Desk: भारत में भीषण गर्मी का प्रकोप हर साल बढ़ता जा रहा है और अब यह मुद्दा सीधे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस गंभीर खतरे को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। यह कदम एक जनहित याचिका (PIL) के जवाब में उठाया गया है जिसमें पिछले साल हीटवेव और गर्मी से संबंधित बीमारियों के कारण 700 से अधिक मौतों का चौंकाने वाला आंकड़ा प्रस्तुत किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: केंद्र से मांगा जवाब
CJI बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने गृह मंत्रालय, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और अन्य संबंधित विभागों को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। यह नोटिस पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड़ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया गया।
याचिका में केवल मौतों का ही जिक्र नहीं किया गया है बल्कि 'पूर्वानुमान गर्मी की चेतावनी जारी करने/पूर्व चेतावनी प्रणाली और चौबीसों घंटे निवारण हेल्पलाइन आदि' जैसी सुविधाओं को प्रदान करने के लिए भी निर्देश देने की मांग की गई है।
भीषण गर्मी का फैलता दायरा और बढ़ता खतरा
याचिकाकर्ता विक्रांत तोंगड़ की ओर से पेश हुए वकील आकाश वशिष्ठ ने अदालत को बताया कि पिछले साल भीषण गर्मी के कारण 700 से अधिक लोगों की मौत हुई। उन्होंने आगाह किया कि भविष्य में 'हीट स्ट्रेस' (गर्मी का प्रकोप) और भी तीव्र होता जाएगा जिससे मौत का आंकड़ा और बढ़ सकता है।
वशिष्ठ ने एक महत्वपूर्ण बात पर प्रकाश डाला: "पहले भीषण गर्मी और लू की स्थिति उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत सहित तीन क्षेत्रों में रहती थी लेकिन अब यह पूर्वी तट पूर्व उत्तर-पूर्व प्रायद्वीपीय दक्षिणी और दक्षिण-मध्य क्षेत्रों में फैल गई है और यह आईएमडी (भारतीय मौसम विज्ञान विभाग) की एक रिपोर्ट में खुद कहा गया है।" यह दर्शाता है कि गर्मी का प्रकोप अब देश के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहा है जिससे निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है।
दिशा-निर्देशों की अनदेखी और वैधानिक जिम्मेदारियां
याचिका में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा 2019 में राष्ट्रीय दिशानिर्देश जारी किए जाने के बावजूद कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक अनिवार्य ग्रीष्म कार्य योजना (Heat Action Plan) को लागू नहीं किया है। यह एक गंभीर चूक है खासकर तब जब आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 35 के तहत केंद्र की यह वैधानिक जिम्मेदारी है कि वह आपदा प्रबंधन के लिए उचित उपाय करे।
स्पष्ट है कि दिशानिर्देशों का अभाव नहीं बल्कि उनके उचित कार्यान्वयन की कमी ही असली चुनौती है।
जलवायु परिवर्तन मुआवजा और सामाजिक सुरक्षा
याचिका में बढ़ते तापमान के संकट को सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जोड़ा गया है। यह एक वैश्विक सच्चाई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएं जिनमें हीटवेव भी शामिल हैं अधिक बार और तीव्र होती जा रही हैं।
याचिका में गर्मी से संबंधित बीमारियों के पीड़ितों को मुआवजा देने और अत्यधिक गर्मी की अवधि के दौरान कमजोर वर्गों को न्यूनतम मजदूरी या अन्य सामाजिक और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने की भी मांग की गई है। यह दर्शाता है कि हीटवेव केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं है बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक समस्या भी है जो विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों को प्रभावित करती है।
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