75 years of independence Azadi : आजादी के 75 वर्ष…आजादी, मटकी, पानी, दलित और मौत…

img

(पवन सिंह)
75 years of independence Azadi . आजादी के 75 Year। लाखों मीटर का झंडा Dear। सरकारी प्रोपेगंडा Here। झंड़ा भी बेंचा Where, Their and every where….आजादी के 75 Year है न My Dear..! .. लेकिन कौन सी आजादी मनाएं? जाति के आधार पर मनाएं या धर्म के आधार पर मनाएं या उन लाखों करोड़ आदिवासियों व दलितों को कुचल देने की आजादी… असमानता और बढ़ती घृणा की आजादी….या राजस्थान के सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल में हुई घटना की आजादी…कौन सी आजादी? एक चार साल का मासूम दलित बच्चा शिक्षक द्वारा इसलिए मार दिया गया क्योंकि उसने मटकी छूकर पानी पी लिया था। दरअसल, ये देश आज भी अपनी कबीलियाई संस्कृति से आजाद नहीं हुआ है। वही जाहिलियत और वही बर्बरता और खून के कतरे-कतरे में समाया जाति व धर्म का जहर। इस जहर पर चांदी का वर्क चढ़ाया गया है जिस पर लिखा है वसुधैव कुटुंबकम्…यंत्र नारियस्तु पूज्यंते… प्राणियों में सद्भाव हो….अधर्म का नाश‌ हो…ये छुहारे हैं जिसे उछाल उछाल कर हम अपने को सभ्य समाज दिखाने की कोशिश करते हैं, जो‌‌ हैं नहीं।

दलित और आदिवासियों के खिलाफ लगातार अपराध बढ़ रहे

देश में दलित और आदिवासियों के खिलाफ लगातार अपराध बढ़ रहे हैं। मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार द्वारा जो आंकड़े रखे गए हैं, वो बताते हैं कि आदिवासियों व दलितों के उत्पीड़न की घटनाएं कम होने की बजाए बढ़ रही हैं। संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष, 2018 में दलितों के खिलाफ 42,793 आपराधिक मामले सामने आए थे। वर्ष, 2020 में यह संख्या बढ़कर 50 हजार तक पहुंच गई। जबकि आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के वर्ष 2018 में 6,528 केस दर्ज हुए जो वर्ष, 2020 में बढ़कर 8,272 हो गए। संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2019 में दलितों के खिलाफ 45,961 मामले सामने आए। वहीं आदिवासियों के खिलाफ 7,570 केस दर्ज किए गए। (75 years of independence Azadi)

उत्तर प्रदेश व बिहार दलित उत्पीड़न के मामलों में सबसे आगे

मैं केवल भारतीय संविधान का मंदिर कहे जाने वाले संसद में पेश किए गए आंकड़ों तक ही सीमित रहूंगा, किसी निजी संस्था के आंकड़े नहीं लिखूंगा। संसद में पेश आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश व बिहार दलित उत्पीड़न के मामलों में सबसे आगे रहे। साल 2018 में सिर्फ उत्तर प्रदेश में 11,924 मामले दर्ज किए गए थे। साल 2019 में 11,829 और साल 2020 में बढ़कर 12,714 हो गए। जबकि बिहार में 2018 में 7,061 मामले सामने आए। लेकिन वर्ष, 2019 में यह घटकर 6,544 हुए लेकिन वर्ष, 2020 में फिर बढ़ोतरी 7,368 तक पहुंच गये। अगर आप आंकड़ों पर गौर‌ करें तो देखेंगे कि दलितों व आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार वह उनका उत्पीडन हिंदी भाषी पट्टी में ज्यादा हुआ है।संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश व राजस्थान में आदिवासियों का उत्पीड़न कम नहीं है।

दलित और आदिवासियों के खिलाफ लगातार अपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में दलित और आदिवासियों के खिलाफ लगातार अपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है। मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार द्वारा जो आंकड़े पेश किए गए हैं, उससे साफ पता चलता है कि आदिवासियों और दलितों के उत्पीड़न की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। तेलंगाना से कांग्रेस के सांसद कोमाती रेड्डी और टीआरएस के सांसद मन्ने श्रीनिवास रेड्डी के सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने लोकसभा में एक आंकड़ा पेश किया है, जिससे यह स्पष्ट है कि साल 2018 से 2020 के बीच दो सालों में दलित-आदिवासियों के खिलाफ आपराधिक मामलों में वृद्धि हुई है।

यूपी-बिहार दलितों के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित

यूपी-बिहार दलितों के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित माने गये हैं। आदिवासियों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश व राजस्थान में दर्ज किए गए हैं। साल 2018 में आदिवासियों के खिलाफ अपराध के मामले 1,868 थे। जो साल 2019 में कम होकर 1,845 हुए, लेकिन साल 2020 में एक बार बढ़कर 2,401 तक पहुंच गए। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में साल 2018 में 1,095 मामले दर्ज हुए। जो साल 2019 बढ़कर 1,797 हो गए। साल 2020 में ये आंकड़ा एक बार फिर बढ़ा और 1,878 तक पहुंच गया।

आयोग में उचित प्रतिनिधित्व नहीं

आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता हंसराज मीना से बात की। उनका कहना है कि देश में लगातार बढ़ते आपराधिक मामले का सबसे बड़ा कारण है सरकार। “भले ही वह राज्य की हो या केंद्र की। वंचितों की कोई सुनवाई नहीं है। नेता सिर्फ घटनाओं पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं।” मीना का कहना है कि, हमारे समाज के लोगों के मामले दर्ज भी हो जाते हैं तो उस पर सही ढंग से कोई कार्रवाई नहीं होती है। इसका सबसे बड़ा कारण आयोग में हमारे समाज के लोगों की अनुपस्थिति है। सरकार आयोग तो बना देती है, लेकिन उसमें हमारा उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। ऐसे हम कैसे कह सकते हैं कि लोगों को न्याय मिल पाएगा।

आदिवासियों के प्राकृतिक आवास पर भी खतरा मंडरा

एक अनुमान के अनुसार 40 लाख से अधिक आदिवासी संरक्षित वन क्षेत्रों में रहते हैं जो देश की कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 5 प्रतिशत है। संरक्षित क्षेत्रों में वन तथा लगभग 600 वन्यजीव अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं। 2006 का एक कानून उन आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों को वन भूमि पर रहने तथा काम करने का अधिकार देता है जिनकी 3 पीढिय़ां दिसम्बर, 2005 से पहले से वहां रह रही हैं। लेकिन अब इन आदिवासियों के प्राकृतिक आवास पर भी खतरा मंडरा रहा है। बड़े पैमाने पर जंगलों से आदिवासियों के निष्कासन से उनकी अधिक संख्या वाले मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा उड़ीसा जैसे राज्यों में अशांति फैलने की आशंका है जो निराधार भी नहीं है क्योंकि 2002 से 2004 के बीच ऐसी ही कोशिश में जंगलों से 3 लाख वनवासियों को हटाने के प्रयास के दौरान हिंसा फैल गई थी। गांवों में आग लगा दी गई, घरों को ध्वस्त किया गया, फसलों को नुक्सान पहुंचा व पुलिस गोलीबारी में कई लोगों की जान गई थी।

आदिवासियों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश और राजस्थान में

गुज़रात भी दलित उत्पीड़न का गर्व लगातार हासिल कर रहा है।‌ आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में गुजरात पुलिस ने बताया है कि बीते दस सालों में अनुसूचित जाति की 814 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई है। इसी समयावधि में अनुसूचित जनजाति की 395 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई है। आदिवासियों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश और राजस्थान में दर्ज हुए हैं। साल 2018 में एमपी में 1,868 और राजस्थान में 1,095 मामले दर्ज हुए थे। 2019 में एमपी में 1,845 और राजस्थान में 1,797 मामले दर्ज हुए। 2020 में एमपी में 2,401 और राजस्थान में 1,878 मामले दर्ज हुए हैं।

हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर

आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मनाते हुए उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार उल्लंघन के केसों को श्रद्धा पूर्वक नमन कर लेख को समाप्त करूंगा-हिरासत में मौत के मामलों में भी उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। यूपी में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है। एनएचआरसी के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में हुई हिरासत में मौत के मामलों का करीब 23% उत्तर प्रदेश के हिस्से जाता है। पिछले तीन वित्त वर्षों से 31 अक्टूबर 2021 तक आए मानवाधिकार उल्लंघन के कुल मामलों के तक़रीबन 40 फीसदी अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। यानी पूरे देश में सबसे ज्यादा मानवाधिकार का उल्लंघन योगी शासित उत्तर प्रदेश में हो रहा है। 2015 के मुकाबले 2016 में दलित महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। साल 2015 में जहां रेप के 444 मामले प्रदेश में दर्ज किए गए थे। वहीं 2016 में दर्ज मामलों की संख्या 557 पहुंच गई। इसके अलावा रेप के प्रयास के 77 मामले दर्ज किए गए जबकि साल 2015 में यह आंकड़ा महज 22 था।

यौन उत्पीड़न के मामलों में भी इजाफा

यौन उत्पीड़न के मामलों में भी इजाफा दर्ज किया गया है। 2016 में 874 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि साल 2015 में 704 मामले दर्ज किए गए थे। इस तरह के मामलों में हो रहे इजाफे पर केंद्र सरकार ने हाल में दिल्ली में एक बैठक की। इसमें प्रदेश सरकार की तरफ से समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने दलितों पर बढ़ते अत्याचार की रिपोर्ट और सरकार का पक्ष रखा। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में दलितों पर अत्याचार के कुल 8,460 मामले दर्ज किए गए थे जबकि साल 2016 में आपराधिक मामलों का आंकड़ा बढ़कर 10,492 हो गया था। आप सभी देशवासियों को आजादी का 75वां वर्ष मुबारक हो। फिलहाल, मैं “मटकी से मौत तक” का सफर तय करने वाले उस चार साल के बच्चें के चरणों‌ में नमन करता हूं।

9 वर्षीय दलित छात्र की बेरहमी से पिटाई से मौत के बाद एक्शन में राजस्थान सरकार, 20 लाख मुआवजे का ऐलान

Bihar politics: BJP नीतीश से हारी, 4 राज्य सरकारें 6 साल में गिराईं, लेकिन बिहार में दूसरी बार अपनी ही सरकार गंवाई

Jaish-e-Mohammed terrorist arrested: नदीम के साथी को ATS ने फतेहपुर से पकड़ा, वर्चुअल ID बनाने में एक्सपर्ट

Related News