Up Kiran, Digital Desk: सावन का महीना शुरू होते ही उत्तर भारत में शिवभक्तों की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा कांवड़ यात्रा फिर से चर्चा में है। 11 जुलाई से शुरू हुई यह यात्रा जहां लाखों श्रद्धालुओं के उत्साह का प्रतीक बनती है, वहीं इसके साथ कुछ विवाद भी हर बार जुड़ जाते हैं। इस बार भी यूपी और उत्तराखंड की राजनीति में हलचल मच गई है क्योंकि हाल के दिनों में कांवड़ियों ने यात्रा मार्ग पर कई ढाबों में तोड़फोड़ की घटनाओं को अंजाम दिया।
कांवड़ियों का आरोप था कि कुछ ढाबा मालिक मुस्लिम होते हुए भी हिंदू नाम का बोर्ड लगाकर अपना कारोबार चला रहे हैं। इस पर कई जगह बहस छिड़ गई क्या किसी मुस्लिम कारोबारी को हिंदू नाम से होटल या ढाबा चलाना गैरकानूनी है?
असल में यह पहला मौका नहीं है जब ऐसा मुद्दा सामने आया हो। पहले भी कुछ मुस्लिम व्यवसायियों पर यह आरोप लग चुके हैं कि वे हिंदू नाम से होटल या ढाबा चलाते हैं। कई बार जांच में आरोप सही साबित हुए हैं तो कुछ शिकायतें बेबुनियाद भी निकली हैं।
अब बात करते हैं कानून की भारतीय संविधान हर नागरिक को मनचाहा कारोबार शुरू करने और चलाने की पूरी आज़ादी देता है। होटल या ढाबा खोलने के लिए खाद्य विभाग से लाइसेंस लेना पड़ता है जिसमें मालिक का असली नाम दर्ज होता है। यह लाइसेंस हमेशा ढाबे में रखना जरूरी है ताकि किसी भी जांच या शिकायत के दौरान सही जानकारी मिल सके।
कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से अलग नाम से काम कर रहा है तो उसे अपराध नहीं माना जाता। हां, अगर किसी फर्जी नाम से समाज में अफवाह फैलाना या धार्मिक भावनाओं को भड़काना साबित हो जाए तो जरूर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता के तहत केस दर्ज किया जा सकता है।
ये प्रकरण पहले कोर्ट तक भी पहुंच चुका है। बीते साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों ने कांवड़ यात्रा के रास्तों पर स्थित ढाबों को आदेश दिया था कि वे अपने मालिक और कर्मचारियों के असली नाम बोर्ड पर साफ-साफ लिखें ताकि कोई गलतफहमी न फैले। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस सरकारी आदेश पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि किसी भी व्यवसायी को जबरदस्ती नाम सार्वजनिक करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। हां, यदि कोई अपनी मर्जी से ऐसा करना चाहता है तो उसे रोका भी नहीं जा सकता।
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