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Up Kiran, Digital Desk: कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में अपने प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्तियों और संगठन में बड़े फेरबदल का निर्णय लिया है। यह कदम सिर्फ पदों के फेरबदल तक सीमित नहीं बल्कि आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर पार्टी की नई रणनीति का हिस्सा है। खासतौर पर हरियाणा में यह बदलाव काफी चर्चा में है, जहां पिछले करीब 20 वर्षों में पहली बार गैर-दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। आइए जानते हैं इस बदलाव का जनजीवन और राजनीतिक माहौल पर क्या असर पड़ सकता है।

हरियाणा का बड़ा राजनीतिक उलटफेर, क्या बदलेगी तस्वीर

हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। अब प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर राव नरेंद्र सिंह को चुना गया है। ये नाम इसलिए खास है क्योंकि वे जाट और ओबीसी समुदाय से आते हैं और पार्टी के लिए तीन बार विधायक और स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं। इससे पहले उदय भान इस पद पर थे। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल का नेता बनाया गया है, जो विधानसभा में विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। यह बदलाव हरियाणा में जाट-ओबीसी गठजोड़ को ध्यान में रखते हुए किया गया है, जो आने वाले चुनावों के लिए पार्टी की ताकत बढ़ा सकता है।

राजस्थान और गोवा में भी जल्द हो सकते हैं बड़े बदलाव

हरियाणा के इस बदलाव के बाद अब कांग्रेस राजस्थान और गोवा में भी नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति पर विचार कर रही है। राजस्थान में सचिन पायलट, जो पहले भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। इसके अलावा हरीश चौधरी और अशोक चांदना के नाम भी चर्चा में हैं। पायलट का ओबीसी समुदाय से जुड़ाव और संगठन में उनका अनुभव पार्टी के लिए एक बड़ा फायदा हो सकता है।

गोवा में भी कांग्रेस ने गिरीश चोडणकर को संभावित प्रदेश अध्यक्ष के रूप में देखा जा रहा है। चोडणकर फिलहाल तमिलनाडु और पुडुचेरी के प्रभारी हैं और वे पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के काफी करीबी माने जाते हैं। उनका भी ओबीसी समुदाय से ताल्लुक होना पार्टी की सामाजिक संतुलन की नीति का हिस्सा है।

संगठनात्मक बदलाव से क्या उम्मीदें

इन सभी परिवर्तनों का मकसद सिर्फ पार्टी के चुनावी प्रदर्शन को बेहतर बनाना ही नहीं बल्कि विभिन्न जाति और सामाजिक वर्गों के बीच संतुलन स्थापित करना भी है। खासकर हरियाणा में जाट और ओबीसी के गठजोड़ को मजबूत करने की रणनीति को देख पार्टी अपनी जड़ों को मजबूती देने की कोशिश में है। यह बदलाव स्थानीय नेतृत्व को नया उत्साह देगा और पार्टी की छवि को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।