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Up Kiran, Digital News: रविवार को जिनेवा में अमेरिका और चीन के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत फिर से शुरू हुई। मकसद वही पुराना है – एक सुलझा हुआ समाधान, जो दोनों के व्यापारिक हितों को संतुलन में रख सके। मगर माहौल पूरी तरह बदला हुआ है। एक ओर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बातचीत को “बहुत अच्छी प्रगति” कहकर उत्साहित दिखे, तो दूसरी ओर चीन की सरकारी मीडिया ने दो टूक लहजे में कहा कि किसी भी तरह का “दबाव या समझौता” स्वीकार नहीं किया जाएगा।

बातचीत का वक्त, माहौल और मतलब

जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के स्विस राजदूत के आवास के बाहर कई काली गाड़ियां आती-जाती देखी गईं। भीतर क्या हो रहा था, इसकी कोई सार्वजनिक झलक नहीं मिली। मीडिया को दूर रखा गया, मगर सूत्रों के हवाले से खबरें छनकर बाहर आईं – दोनों पक्ष गंभीर हैं, मगर रुख अलग-अलग है।

शनिवार को भी इसी मुद्दे पर बातचीत हुई थी, मगर किसी निष्कर्ष पर पहुंचे बिना चर्चा स्थगित कर दी गई थी। रविवार को बातचीत फिर से शुरू हुई। विशेषज्ञों के अनुसार, यह पहला मौका है जब दोनों पक्ष इतने तनावपूर्ण माहौल में आमने-सामने बैठे हैं।

टैरिफ की लड़ाई और इसका असर

अमेरिका ने हाल ही में चीन पर टैरिफ बढ़ाकर 145% कर दिया था। जवाब में चीन ने भी 125% तक शुल्क लगा दिया। इससे करीब 660 अरब डॉलर का व्यापार प्रभावित हो रहा है। कई जहाज बंदरगाहों पर खड़े हैं, क्योंकि टैरिफ तय नहीं हुए हैं – माल उतारा नहीं जा सकता।

ट्रंप की सोशल मीडिया पोस्ट्स हमेशा चर्चा में रहती हैं। उन्होंने लिखा कि 80% टैरिफ सही लगता है! ये स्कॉट पर निर्भर करता है। ये स्कॉट बेसेंट के लिए था, जो अमेरिका के मुख्य वार्ताकार और ट्रेजरी सेक्रेटरी हैं यानी बातचीत चल रही है मगर ट्वीट्स और बयानों से माहौल और गर्म हो सकता है।

चीन की दो टूक – कोई समझौता नहीं जो मूल्यों से समझौता करे

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ का संपादकीय काफी स्पष्ट था। उन्होंने लिखा कि बातचीत दबाव डालने या जबरदस्ती थोपने का जरिया नहीं हो सकती। चीन ने यह भी कहा कि वह किसी ऐसे प्रस्ताव को नहीं मानेगा जो “वैश्विक समानता के सिद्धांतों” को कमजोर करे। यानी चीन अब पहले की तरह झुकने को तैयार नहीं है। बीजिंग चाहता है कि उसे बराबरी का दर्जा मिले और बातचीत निष्पक्ष हो – न कि अमेरिका की शर्तों पर।

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