Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा चुनाव में मोकामा सीट इस समय सबसे अधिक चर्चा में है। इस सीट पर जेडीयू के बाहुबली नेता अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने राजनीति के समीकरण को पूरी तरह से बदल दिया है। अनंत सिंह को दुलारचंद यादव की हत्या के मामले में जेल भेजा गया है, और इस घटना ने न केवल जातीय ध्रुवीकरण को बढ़ाया, बल्कि अनंत सिंह के भविष्य पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
हालांकि, इस मामले पर अलग-अलग राय हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अनंत सिंह की पत्नी, नीलम देवी, के चुनाव प्रचार में उतरने से उनका पक्ष मजबूत हो सकता है। नीलम देवी के प्रचार अभियान के जरिए अनंत सिंह को जेल से बाहर समर्थन मिल सकता है। कई समर्थकों का मानना है कि इस स्थिति में ‘विक्टिम कार्ड’ के चलते जनता का सहानुभूति मिल सकती है, जो चुनावी जीत की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है।
जातीय समीकरण और सरकार की रणनीति
राजनीतिक रूप से मोकामा में इस बार जातीय समीकरण एक अहम मुद्दा बन गया है। मोकामा सीट पर ज़्यादातर भूमिहार वोटर्स हैं, जो इस समय आरजेडी के सूरजभान सिंह से अपना रुख बदलने की सोच रहे हैं। अनंत सिंह के समर्थन में आने से यह सीट उनके लिए एक बार फिर से मजबूत हो सकती है। वहीं, आरजेडी ने इसे यादव बनाम भूमिहार की लड़ाई के रूप में पेश करने की कोशिश की है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह रणनीति जेडीयू और बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि वे यादव समुदाय को लेकर जंगलराज की याद दिला सकते हैं।
इतिहास गवाह है कि अनंत सिंह ने दो बार जेल में रहते हुए भी चुनाव जीतने का कारनामा किया था। अब उनके समर्थक यह उम्मीद कर रहे हैं कि तीसरी बार भी यही स्थिति बनेगी। मोकामा की राजनीति इस बार न केवल क्षेत्रीय बल्कि पूरे राज्य में असर डालने वाली हो सकती है।
नीतीश सरकार की रणनीति: अगड़ा-पिछड़ा का खेल
मोकामा चुनाव की एक और दिलचस्प बात यह है कि इस बार केवल भूमिहार वोट बैंक तक सीमित नहीं है। अनंत सिंह के खिलाफ दुलारचंद यादव हत्या मामले में ओबीसी वर्ग के मणिकांत ठाकुर और दलित समुदाय के रंजीत राम की गिरफ्तारी ने राजनीतिक हलकों में नया चर्चा छेड़ा है। इस मामले में नीतीश सरकार ने अगड़ा-पिछड़ा के बीच विभाजन की कोशिश को विफल कर दिया है। अलग-अलग जातीय वर्गों की गिरफ्तारी से यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि सरकार का पक्ष हर वर्ग के खिलाफ समान है, और इस प्रकार जातीय भेदभाव का मुद्दा सिमट सकता है।
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