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Up Kiran, Digital Desk: बिहार और पश्चिम बंगाल में आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मैदान में अपने सबसे भरोसेमंद नेताओं को उतार दिया है। यह फैसला न सिर्फ पार्टी की रणनीतिक दिशा को दर्शाता है, बल्कि यह भी साफ करता है कि पार्टी इन राज्यों में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। इस बदलाव का सीधा असर जनता, कार्यकर्ताओं और राजनीतिक माहौल पर पड़ने वाला है।

बिहार में बड़ी जिम्मेदारी, जनता को साधने की तैयारी

कुछ ही महीनों में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। एनडीए और महागठबंधन के बीच टक्कर तेज होती जा रही है। ऐसे समय में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को राज्य चुनाव का प्रभारी बनाया गया है। वहीं, उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल को सह-प्रभारी की भूमिका दी गई है।

यह जिम्मेदारियां बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के निर्देश पर दी गई हैं, जिसकी पुष्टि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह के हस्ताक्षर वाले आधिकारिक पत्र से हुई है। इन नेताओं का ज़मीनी अनुभव और संगठन पर पकड़ पार्टी को गांव-गांव तक पहुंचाने में मदद करेगा।

बंगाल की बारी: ममता बनर्जी को घेरने की तैयारी

बिहार के बाद अब नजर पश्चिम बंगाल पर है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे। यहां केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को मुख्य प्रभारी बनाया गया है। साथ ही पूर्व त्रिपुरा मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को सह-प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई है। यह कदम साफ करता है कि बीजेपी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी को सीधी चुनौती देने का मन बना चुकी है।

2011 से ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री हैं और उनकी पार्टी टीएमसी का बंगाल में गहरा जनाधार है। ऐसे में बीजेपी की यह नियुक्तियां राजनीतिक समीकरणों को बदलने की दिशा में एक बड़ा प्रयास मानी जा रही हैं।

सिर्फ नेताओं की नियुक्ति नहीं, बल्कि संदेश भी

इन नियुक्तियों को केवल संगठनात्मक बदलाव मानना ठीक नहीं होगा। दरअसल, इसके जरिए बीजेपी कार्यकर्ताओं और जनता को यह संदेश देना चाहती है कि पार्टी पूरी ताकत से मैदान में है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बिहार का दौरा कर चुनावी बिगुल फूंका है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव भी लगातार रैलियों और जनसभाओं में जुटे हैं।

इस माहौल में बीजेपी का यह कदम स्पष्ट करता है कि पार्टी का फोकस न सिर्फ चुनाव जीतना है, बल्कि जनता के मुद्दों को सामने लाकर विश्वास भी जीतना है।