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रूस-यूक्रेन जंग ने बांग्लादेश के सामने अपनी विदेश नीति को लेकर एक बड़ी समस्या पैदा कर दी है। यूएसए तथा रूस के मध्य बढ़ती दुश्मनी के कारण ढाका अपने गुटनिरपेक्षता के बीच में फंस गया है। कुल मिलकर कहा जा सकता है कि बांग्लादेश गेहूं में घुन का तरह पिस रहा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार वाशिंगटन एवं मॉस्को दोनों के साथ अपने रिश्ते बनाए रखना बांग्लादेश के लिए आवश्यक है, लेकिन जंग के दौरान यह एक मुश्किल कार्य बन गया है। हिंदुस्तान के पड़ोसी मुल्क के सामने यह मुसीबत ऐसे वक्त में खड़ी हुई है जब वहां दो बड़े इलेक्शनों की तैयारी चल रही है. बांग्लादेश के इलेक्शन कमीशन ने पिछले सप्ताह ऐलान किया था कि देश के अगले राष्ट्रपति का इलेक्शन 19 फरवरी को होगा। इसके साथ साथ अगले साल की शुरुआत में आम इलेक्शन भी होने हैं।

इस सिल सिले में बांग्लादेश की सियासी हलचल भी तेज होती दिखाई दे रही है। मुख्य रूप से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और प्रतिबंधित इस्लामवादी जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश (जेईआई) की तरफ से बड़ी विरोध रैलियां हुई हैं। इलेक्शन से पहले विपक्षी पार्टी पीएम शेख हसीना के सामने चुनौती पेश करने की तैयारी में हैं।

हालाँकि, सन् 2009 में प्रधान मंत्री हसीना के सत्ता में लौटने के बाद से इसने राजनीतिक स्थिरता देखी है। शेख हसीना को बेहतर सामाजिक-आर्थिक सूचकांक और बांग्लादेश में कानून व्यवस्था की स्थिति में बदलाव का क्रेडिट दिया जाता है।
 

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