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Up Kiran, Digital Desk: पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर से बड़ा मोड़ आया है। केंद्र सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया है, जिसमें 1 अगस्त से राज्य में मनरेगा योजना को दोबारा शुरू करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि किसी भी योजना को "अनिश्चित काल तक ठप" नहीं किया जा सकता।
चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम की बेंच ने 19 जुलाई की सुनवाई में साफ किया था कि यदि कोई मजदूरी फर्जी नामों पर ली गई है तो उसके खिलाफ कार्रवाई जरूरी है, लेकिन जिन लोगों ने ईमानदारी से काम किया है उन्हें उनकी मज़दूरी से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने केंद्र को यह छूट भी दी थी कि वह योजना में सख्त नियम लागू करे, मगर श्रमिकों का अधिकार छीना नहीं जा सकता।
ममता बनर्जी को मिला राजनीतिक सहारा?
राज्य की राजनीति में यह फैसला ममता बनर्जी के लिए संजीवनी माना जा रहा है। चुनावी मौसम से पहले अदालत का यह रुख उनके लिए बड़ा हथियार साबित हो सकता है। मुख्यमंत्री लंबे समय से आरोप लगाती रही हैं कि केंद्र ने पिछले तीन सालों से बंगाल का मनरेगा फंड रोक रखा है, जिससे लाखों ग्रामीण मज़दूरों की रोज़ी-रोटी प्रभावित हुई।
जून में विधानसभा सत्र के दौरान इस मुद्दे पर जोरदार हंगामा भी हुआ था। ममता बनर्जी ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा था कि केंद्र सरकार ने "ग़ैरकानूनी तरीके से" राज्य का फंड रोक दिया, जबकि अन्य राज्यों में भ्रष्टाचार के बावजूद भुगतान जारी रहा। उनके मुताबिक यह कदम राजनीतिक दुर्भावना से उठाया गया है।
मनरेगा की जड़ों में झांके
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना मानी जाती है। इसका उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में सालाना 100 दिन का रोजगार देकर परिवारों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस योजना में काम करने वाले श्रमिकों की मज़दूरी का बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार वहन करती है।
आखिर क्यों रोका गया था फंड?
पश्चिम बंगाल में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग मनरेगा से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2021 में केंद्र ने फंड जारी करना बंद कर दिया था। वजह बनी थी अनियमितताओं की शिकायतें। ग्रामीण मंत्रालय की जांच में 63 जगहों पर मजदूरी भुगतान और कामकाज की समीक्षा की गई थी, जिनमें से आधे से ज्यादा मामलों में गड़बड़ी पाई गई। इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर फंड रोकने का फैसला लिया गया।
अब जंग सुप्रीम कोर्ट तक
हाईकोर्ट का आदेश न केवल राज्य सरकार के लिए राजनीतिक राहत लेकर आया, बल्कि बीजेपी के लिए नई चुनौती भी बन गया। विधानसभा में इस मुद्दे को लेकर हंगामा इतना बढ़ा कि एक बीजेपी विधायक को निलंबित करना पड़ा था। अब केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट पहुंचना यह संकेत देता है कि आने वाले दिनों में मनरेगा की लड़ाई सिर्फ कोलकाता तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसका शोर दिल्ली की गलियों और सुप्रीम कोर्ट के दरबार तक गूंजेगा। चुनावी मौसम में यह विवाद निश्चित तौर पर बड़ा मुद्दा बनने वाला है।
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