Up Kiran,Digitl Desk: पटना से लेकर दिल्ली तक, जिस मुद्दे ने बिहार की सियासत में भूचाल ला दिया है, उस पर आज सबकी नज़रें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं. बिहार सरकार द्वारा कराए गए जाति आधारित सर्वेक्षण और उसके आधार पर नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को 65% तक बढ़ाने के फ़ैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है.
यह सुनवाई इसलिए भी अहम है क्योंकि इससे यह तय होगा कि बिहार में बढ़ा हुआ आरक्षण लागू रहेगा या उस पर रोक लगेगी.
क्यों पहुँचा मामला सुप्रीम कोर्ट; बिहार सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ 'यूथ फ़ॉर इक्वैलिटी' और कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. उनका कहना है कि यह फ़ैसला समानता के मौलिक अधिकार के ख़िलाफ़ है.
याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलीलें ये हैं:
50% की सीमा का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने ही इंदिरा साहनी मामले (मंडल केस) में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की थी. बिहार सरकार का नया क़ानून इस सीमा का सीधा उल्लंघन करता है.
कोई असाधारण स्थिति नहीं: याचिका में कहा गया है कि आरक्षण की सीमा को सिर्फ़ "असाधारण परिस्थितियों" में ही पार किया जा सकता है, जबकि बिहार में ऐसी कोई स्थिति नहीं है.
जाति आधारित भेदभाव: उनका मानना है कि यह क़दम जाति के आधार पर भेदभाव को और बढ़ावा देगा.
पटना हाईकोर्ट ने दी थी हरी झंडी; इससे पहले, पटना हाईकोर्ट ने जाति सर्वेक्षण और बढ़े हुए आरक्षण, दोनों को सही ठहराया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार का मक़सद पिछड़ी जातियों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है. इसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ अब मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में है.
आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह देखेगा कि क्या बिहार सरकार का फ़ैसला संवैधानिक रूप से सही है. इस फ़ैसले का असर सिर्फ़ बिहार पर ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे राज्यों पर भी पड़ सकता है जो इसी तरह के सर्वेक्षण कराने पर विचार कर रहे हैं. यह सुनवाई देश में आरक्षण की राजनीति की अगली दिशा तय कर सकती है.
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