Up Kiran, Digital Desk: बिहार का शिक्षा विभाग बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। अब नौवीं से बारहवीं तक के बच्चों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई की बाकायदा पढ़ाई शुरू होने जा रही है। यह योजना अभी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू होगी और पहले चरण में पांच जिलों को चुना गया है। इनमें भागलपुर के साथ रोहतास और नवादा भी शामिल हैं।
पहले चरण में पांच जिले, दो सौ स्कूल और चार सौ शिक्षक जुड़ेंगे
मंगलवार को शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सारे जिलों को दिशा-निर्देश दिए। भागलपुर के जिला शिक्षा पदाधिकारी राजकुमार शर्मा ने बताया कि इस काम में गैर-सरकारी संस्थाएं भी साथ रहेंगी। पिरामल फाउंडेशन के अलावा एक और संगठन को जोड़ा जा रहा है। तकनीकी मदद के लिए आईआईटी कानपुर का बनाया हुआ साथी ऐप इस्तेमाल होगा।
जिले में बीस कॉम्प्लेक्स रिसोर्स सेंटर यानी सीआरसी चुने जाएंगे। हर सीआरसी से दस स्कूल जुड़ेंगे। इस तरह कुल दो सौ स्कूल और चार सौ शिक्षकों को पहले एआई का प्रशिक्षण मिलेगा। फिर यही शिक्षक अपने स्कूलों में बच्चों को एआई की बुनियादी बातें सिखाएंगे। इसमें प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट भी होंगे और यह भी बताया जाएगा कि एआई से करियर के कौन-कौन से रास्ते खुलते हैं।
राजकुमार शर्मा कहते हैं कि आने वाला वक्त एआई का है। स्वास्थ्य हो या उद्योग, रोबोटिक्स हो या रक्षा क्षेत्र, हर जगह इसकी जरूरत बढ़ रही है। इसलिए बच्चों को अभी से तैयार करना जरूरी है। जैसे ही मुख्यालय से औपचारिक पत्र आएगा, सीआरसी और स्कूल चुनने का काम शुरू हो जाएगा।
हर ब्लॉक में एक मॉडल स्कूल बनाने की कवायद तेज
एआई के साथ ही एक और बड़ी खबर है। शिक्षा विभाग अब हर ब्लॉक में एक मॉडल स्कूल तैयार करने जा रहा है। भागलपुर में कुल सत्रह ब्लॉक हैं जिनमें नगर निगम क्षेत्र भी शामिल है। हर ब्लॉक से एक स्कूल को चुना जाएगा। इसके अलावा तीनों अनुमंडलों में एक-एक आदर्श स्कूल भी बनाया जाएगा।
इन स्कूलों में बेहतर क्लासरूम, लाइब्रेरी, लैब और खेल का मैदान जैसी सुविधाएं होंगी। शिक्षण का तरीका भी आधुनिक होगा ताकि बच्चे सिर्फ रटने की बजाय समझकर सीखें। अधिकारियों ने साफ कहा है rằng इन स्कूलों को दूसरे स्कूलों के लिए नजीर बनना है। चयन का काम जल्द शुरू होने वाला है।
असल में हो क्या रहा है?
दोनों योजनाओं को देखकर साफ लगता है कि बिहार सरकार अब स्कूल शिक्षा को पूरी तरह नया रंग देना चाहती है। एक तरफ बच्चे दसवीं-बारहवीं पास करते करते एआई जैसी नई तकनीक सीख जाएंगे तो दूसरी तरफ हर इलाके में एक ऐसा स्कूल होगा जिसे देखकर बाकी स्कूल भी सुधरने को मजबूर हो जाएं।
अगर ये दोनों प्रयोग कामयाब रहे तो आने वाले कुछ सालों में बिहार के सरकारी स्कूलों की तस्वीर ही बदल जाएगी। बच्चे गांव-कस्बों में रहते हुए भी वो शिक्षा पा सकेंगे जो आज सिर्फ महंगे प्राइवेट स्कूलों तक सीमित है। अब देखना यह है कि कागजों की ये योजनाएं धरातल पर कितनी तेजी और कितने ईमान से उतरती हैं।
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