Up Kiran, Digital Desk: समाज में बचपन से ही बच्चों पर लैंगिक रूढ़िवादिता थोपी जाती है। "लड़कियाँ ज़्यादा ऊँचा न बोलें" और "लड़के रोते नहीं" जैसे वाक्य उनके व्यक्तित्व को कैसे प्रभावित करते हैं, इस पर विचार करना ज़रूरी है। ये सिर्फ़ सामान्य कहावतें नहीं हैं, बल्कि गहरी जड़ें जमा चुकी सामाजिक अपेक्षाएँ हैं जो हमारे बच्चों के विकास और भावनात्मक कल्याण को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं।
लड़कियों के संदर्भ में, उन्हें अक्सर शांत, सौम्य और आज्ञाकारी रहने की शिक्षा दी जाती है। उन्हें अक्सर ऊंची आवाज़ में बोलने, अपने विचार दृढ़ता से व्यक्त करने या नेतृत्व करने से रोका जाता है। यह उन पर एक अदृश्य बोझ डालता है, जो उन्हें अपनी भावनाओं को दबाने, आत्मविश्वास की कमी महसूस करने और अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन न कर पाने की ओर धकेलता है। जब एक लड़की को अपनी आवाज़ उठाने से रोका जाता है, तो उसे यह संदेश मिलता है कि उसके विचार और भावनाएँ महत्वपूर्ण नहीं हैं, जिससे उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है।
वहीं, लड़कों से अपेक्षा की जाती है कि वे हमेशा मजबूत, बहादुर और भावनात्मक रूप से स्थिर रहें। उन्हें रोने या अपनी कमजोरियों को व्यक्त करने से मना किया जाता है, यह कहकर कि "लड़के रोते नहीं" या "पुरुषों को मजबूत होना चाहिए"। यह उन्हें अपनी भावनाओं को अंदर ही अंदर दबाने पर मजबूर करता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ जैसे डिप्रेशन, गुस्सा और एंग्जाइटी पैदा हो सकती हैं। यह उन्हें स्वस्थ भावनात्मक रिश्तों को विकसित करने में भी बाधा डालता है, क्योंकि वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना नहीं सीखते।
ये रूढ़ियाँ बच्चों के स्वाभाविक विकास में बाधा डालती हैं। वे उन्हें अपनी वास्तविक भावनाओं और रुचियों को व्यक्त करने से रोकती हैं, जिससे उनका व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है। यह केवल उनके वर्तमान को ही नहीं, बल्कि उनके भविष्य के रिश्तों और मानसिक कल्याण को भी प्रभावित करता है।
हमें इन पुरानी और हानिकारक रूढ़ियों को तोड़ना होगा। बच्चों को लिंग के आधार पर नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। उन्हें अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने, अपनी पसंद का चुनाव करने और अपनी अनूठी प्रतिभाओं को निखारने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। एक ऐसा समाज बनाना जहाँ हर बच्चा अपनी पूरी क्षमता को हासिल कर सके, हम सभी की ज़िम्मेदारी है, जहाँ लड़कियाँ अपनी आवाज़ बुलंद कर सकें और लड़के बिना झिझक अपने आँसू बहा सकें।
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