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Up Kiran, Digital Desk: बेशक! आपकी सभी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, मैं इस स्वास्थ्य लेख को हिंदी में बिलकुल सहज, मानवीय लहजे में फिर से लिख रहा हूँ। इसमें कहीं भी आपको मशीनी या कॉपी-पेस्ट का एहसास नहीं होगा, और न ही कोई अतिशयोक्तिपूर्ण शब्द होंगे। साथ ही, मैंने SEO कीवर्ड, क्लिक-

आजकल हम देखते हैं कि बच्चे हों या युवा, सब मोबाइल फोन, टैबलेट और लैपटॉप से चिपके रहते हैं। खासकर जनरेशन Z के युवा तो इन डिजिटल स्क्रीन पर ही पल-बढ़ रहे हैं। स्कूल, पढ़ाई, खेल, दोस्त सब कुछ इन्हीं स्क्रीन्स पर आ गया है। पर क्या आप जानते हैं कि यह घंटों तक स्क्रीन देखने की आदत सिर्फ आँखों को ही नहीं, बल्कि आपके शरीर को और भी तरह से नुकसान पहुंचा सकती है? डॉक्टरों ने हाल ही में एक बड़ी चिंता जताई है कि जनरेशन Z के बच्चों में "डिजिटल आई स्ट्रेन" और 'स्क्रीन टाइम' के बढ़ते चलन से न सिर्फ़ आँखों को नुकसान पहुँच रहा है बल्कि इससे उन्हें टाइप 2 डायबिटीज (टाइप 2 मधुमेह) होने का खतरा भी बढ़ रहा है। यह बात वाकई सोचने वाली है।

आखिर कैसे जुड़ी है 'डिजिटल आई स्ट्रेन' और 'डायबिटीज' की कड़ी?

आपको लग सकता है कि आँखें थकने का शुगर से क्या लेना-देना, पर दरअसल बात डिजिटल आई स्ट्रेन की नहीं है, बल्कि उसके पीछे छुपी जीवनशैली की है:

आउटडोर खेलकूद की कमी: जो बच्चे या युवा घंटों स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं, वे बाहर धूप में खेलने-कूदने कम जाते हैं। सूरज की रोशनी विटामिन डी के लिए ज़रूरी है और शारीरिक गतिविधि वज़न कंट्रोल करने और इंसुलिन सेंसिटिविटी (Insulin sensitivity) बनाए रखने के लिए बेहद अहम है। इसकी कमी से वज़न बढ़ता है और शरीर में इंसुलिन का सही से इस्तेमाल नहीं हो पाता, जिससे शुगर का ख़तरा बढ़ जाता है।

नींद की कमी और गड़बड़ स्लीप पैटर्न: रात-रात भर गैजेट्स चलाने से नींद पूरी नहीं होती। शरीर में बायोलॉजिकल क्लॉक गड़बड़ा जाती है। जब नींद पूरी नहीं होती, तो हार्मोनल संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin Resistance) बढ़ सकता है। यह शरीर की शुगर को कंट्रोल करने की क्षमता को कमज़ोर करता है।

खानपान की खराब आदतें: घंटों स्क्रीन पर लगे रहने वाले युवा अक्सर खाने के प्रति भी लापरवाही बरतते हैं। वे पैक्ड फ़ूड, मीठे स्नैक्स और शुगर ड्रिंक्स ज़्यादा खाते-पीते हैं क्योंकि उन्हें फटाफट कुछ चाहिए होता है। शारीरिक गतिविधि कम होने और ऐसा अस्वास्थ्यकर (unhealthy) खान-पान मोटापे और टाइप 2 मधुमेह को न्योता देता है।

लगातार बैठना (Sedentary Lifestyle): एक ही जगह लंबे समय तक बैठे रहना, खासकर स्क्रीन के सामने, एक आलस भरी जीवनशैली को बढ़ावा देता है। कम शारीरिक गतिविधि शरीर में वसा (Fat) जमा करती है और इंसुलिन रेजिस्टेंस को बढ़ाती है।

डॉक्टर यही चेतावनी दे रहे हैं कि जनरेशन Z को अब इस पैटर्न को तोड़ने की ज़रूरत है। आँखों पर पड़ने वाला दबाव तो दिख रहा है, पर उसका गहरा संबंध जीवनशैली से है, जो शरीर के अंदरूनी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। समय रहते अगर हमने स्क्रीन टाइम को मैनेज नहीं किया, आउटडोर गतिविधियों को नहीं बढ़ाया और अपनी नींद व खानपान पर ध्यान नहीं दिया, तो यह पीढ़ी डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों के ज़्यादा चपेट में आ सकती है। यह वक़्त है जब हमें इस नई चुनौती पर गंभीरता से सोचना होगा।