Up Kiran, Digital Desk: भारतीय राजनीति, खासकर बिहार की राजनीति, में हर चुनाव में कुछ नए चेहरे और पार्टियां अपना भाग्य आज़माने उतरती हैं. इन्हीं में से एक चेहरा हैं मुकेश सहनी, जिनकी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने इस बार बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अपना सिक्का आज़माने की कोशिश की थी. हमेशा से सुर्खियों में रहने वाले सहनी और उनकी पार्टी से काफी उम्मीदें थीं कि शायद वे बिहार के चुनावी समीकरण में कुछ बड़ा बदलाव लाएंगे. लेकिन क्या हुआ, जब वोटों की गिनती हुई और आंकड़ें सामने आए? क्या 'सन ऑफ मल्लाह' बिहार में सचमुच कोई बड़ा कमाल दिखा पाए?
वीआईपी पार्टी का प्रदर्शन: उम्मीद से कमतर!
मुकेश सहनी ने बिहार के निषाद (मल्लाह) समुदाय के वोटों को साधने का दावा किया था, और कई सीटों पर उनकी पार्टी की मौजूदगी को निर्णायक माना जा रहा था. उन्होंने कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे, और उनकी जनसभाओं में भीड़ भी दिखती थी. लेकिन जब अंतिम परिणाम आए, तो तस्वीरें काफी धुंधली नज़र आईं. आंकड़ों की मानें, तो मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) कुछ ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ पाई.
हालाँकि, सहनी खुद को बिहार की राजनीति में एक मजबूत खिलाड़ी मानते हैं, लेकिन इन चुनावों में उनका प्रदर्शन उस स्तर का नहीं रहा जैसा उनकी पार्टी या उनके समर्थक उम्मीद कर रहे थे. संख्या बल के हिसाब से उनकी पार्टी बहुत कम सीटें जीत पाई, जिससे यह साफ होता है कि बिहार के मतदाता शायद इस बार किसी और दिशा में बढ़ गए थे या फिर उन्होंने सहनी की पार्टी पर उतना विश्वास नहीं जताया जितना कि अनुमान लगाया जा रहा था.
किन वजहों से चूक गए मुकेश सहनी?
मुकेश सहनी के अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाने के पीछे कई वजहें हो सकती हैं:
- गठबंधन की बदलती रणनीति: चुनावों से पहले और दौरान गठबंधन बदलते रहे, जिसका असर छोटे दलों पर पड़ा. वीआईपी का शुरुआती गठबंधनों में ठीक से फिट न होना भी एक कारण हो सकता है.
- वोटों का बिखराव: कई बार किसी खास समुदाय के वोट विभिन्न पार्टियों के बीच बंट जाते हैं. शायद 'मल्लाह' वोट बैंक को सहनी पूरी तरह से अपने पाले में नहीं ला पाए, और उनका कुछ हिस्सा दूसरी बड़ी पार्टियों के खाते में चला गया.
- बड़े दलों का प्रभाव: बिहार में राजद, जदयू और भाजपा जैसे बड़े दलों का प्रभाव इतना अधिक है कि उनके सामने छोटे दलों के लिए जगह बना पाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. इन बड़े दलों की रणनीति और जमीनी स्तर पर पकड़ सहनी की पार्टी से ज़्यादा मजबूत रही.
- विकास बनाम जाति: ऐसा भी हो सकता है कि बिहार की जनता ने इस बार जातिगत समीकरणों से ऊपर उठकर 'विकास' या 'स्थिरता' जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी हो, जो बड़ी पार्टियों के पक्ष में गया.
आगे क्या?
चुनावी नतीजे हमेशा सबक देते हैं. मुकेश सहनी और उनकी विकासशील इंसान पार्टी के लिए ये परिणाम भविष्य की रणनीतियां बनाने के लिए एक बड़ा अवसर हैं. उन्हें यह देखना होगा कि कैसे वे अपने जनाधार को और मजबूत करें, और अपनी राजनीतिक उपस्थिति को और प्रभावी बनाएं. फिलहाल, तो आंकड़े यही बता रहे हैं कि बिहार की चुनावी रणभूमि में सहनी ने भले ही पूरी ताक़त से आवाज़ लगाई, लेकिन उसकी गूँज वोट बैंक तक उस तरह से नहीं पहुंच पाई, जैसा उन्होंने सोचा था.




