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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) ने पाकिस्तान के 'विशाल तेल भंडार' (massive oil reserves) को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए एक नए समझौते की घोषणा की। उन्होंने संकेत दिया कि इस विकास से भविष्य में भारत को भी तेल का निर्यात (exports even to India) किया जा सकता है, बावजूद इसके कि वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच व्यापार तनाव (trade tensions) और नए टैरिफ (new tariffs) जारी हैं। ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “हमने अभी-अभी पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका अपने विशाल तेल भंडार को विकसित करने पर मिलकर काम करेंगे।”

भू-राजनीतिक दांव: अमेरिका की पाकिस्तान के तेल पर नजर

इस कदम को क्षेत्रीय प्रभावों को संतुलित करने और चीन (China) पर पाकिस्तान की बढ़ती निर्भरता (Pakistan’s growing dependence on China) को कम करने के लिए एक रणनीतिक खेल के रूप में देखा गया। अमेरिका लंबे समय से पाकिस्तान को चीन (China) पर उसकी अत्यधिक निर्भरता से दूर करने की कोशिश कर रहा है, खासकर ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में जहां चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत अरबों डॉलर का निवेश किया है। हालांकि, कई विशेषज्ञों ने कहा कि पाकिस्तान की तेल क्षमता काफी हद तक अप्रमाणित (largely unproven) है, और सीमित बुनियादी ढांचे के कारण, यह साझेदारी तत्काल कार्रवाई योग्य होने के बजाय अधिक प्रतीकात्मक प्रतीत होती है।

दावों और कठोर वास्तविकताओं का टकराव: पाकिस्तान की असली तेल संभावनाएं

इन राजनयिक सुर्खियों के पीछे एक कम नाटकीय भूवैज्ञानिक वास्तविकता (geological reality) छिपी है। वर्ल्डोमीटर (Worldometer) के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान के केवल पारंपरिक रूप से पुष्टि किए गए तेल भंडार (confirmed conventional oil reserves) मामूली हैं, जो वैश्विक स्तर पर लगभग 50वें स्थान पर हैं।  2016 तक, पाकिस्तान के पास 353.5 मिलियन बैरल प्रमाणित तेल भंडार (proven oil reserves) था, जो दुनिया के कुल भंडार का केवल 0.021% है।  इसकी तुलना में, भारत के पास लगभग 4.8-5 बिलियन बैरल कच्चे तेल का भंडार है, जो पाकिस्तान के भंडार से लगभग 14 गुना अधिक है, और भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष 25 देशों में शामिल है।

पाकिस्तान में 'वेनेजुएला के आकार के भंडार' (Venezuela-sized finds) का वादा करने वाले अधिकांश भूकंपीय अध्ययनों (seismic studies) को अभी तक किसी भी वाणिज्यिक ड्रिलिंग (commercial drilling) द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है।  कुछ अनुमानों ने अपतटीय सिंधु बेसिन (Offshore Indus Basin) में हाइड्रोकार्बन की संभावना का सुझाव दिया है, लेकिन ये केवल प्रारंभिक चरण के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों पर आधारित हैं और इनकी पुष्टि के लिए अभी तक कोई वाणिज्यिक खोज नहीं हुई है। सिंध और बलूचिस्तान (Balochistan) के तटीय क्षेत्रों में भी तेल भंडार होने का दावा किया गया है, लेकिन इन क्षेत्रों में सुरक्षा और राजनीतिक अस्थिरता (political instability) एक बड़ी चुनौती है, जिससे खनन मुश्किल हो जाता है।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि पहले निर्णायक परिणाम तक पहुंचने के लिए भी $5 बिलियन तक और चार साल से अधिक का समय लगेगा। नई रिफाइनिंग इकाइयों और निर्यात-उन्मुख बुनियादी ढांचे (export-oriented infrastructure) के बिना तेल का निर्यात करना असंभव है, और पाकिस्तान की सीमित रिफाइनिंग क्षमता (refining capacity) वर्तमान में अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भी संघर्ष कर रही है। 

फिलहाल, पाकिस्तान अपने पेट्रोलियम (petroleum) का विशाल बहुमत आयात करता है, जिसमें तेल उसके कुल आयात बिल (overall import bill) का लगभग पांचवां हिस्सा है। 2025 में पाकिस्तान का घरेलू तेल उत्पादन (domestic oil production) घटकर 64,262 बैरल प्रतिदिन रहने का अनुमान है, जबकि देश की खपत लगभग 5.5 लाख बैरल प्रतिदिन है, 

जिससे उसे अपनी ज़रूरत का लगभग 85% तेल आयात करना पड़ता है।ऊर्जा ट्रेडर Vitol के साथ पहली बार अमेरिकी कच्चे तेल (US crude oil) की 1 मिलियन बैरल खेप आयात करने का समझौता किया है।  यह कदम मध्य पूर्वी आपूर्तिकर्ताओं पर पाकिस्तान की निर्भरता को कम करने और आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने के लिए है।

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