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Up Kiran, Digital Desk: मिजोरम, जो अपनी खूबसूरती और शांत वादियों के लिए जाना जाता है, आज अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक लड़ रहा है। यह लड़ाई है उस 'ड्रग्स' नाम के दुश्मन से, जो धीरे-धीरे राज्य की युवा पीढ़ी को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। इस खतरे की गंभीरता को समझते हुए, राज्य की नई सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा और सबसे व्यापक अभियान शुरू किया है। सरकार ने ड्रग्स की तस्करी और इसके नशे के खिलाफ चार महीने का एक विशेष महा-अभियान चलाने का ऐलान किया है।

क्यों बन गया है मिजोरम 'ड्रग्स का गेटवे'?

मिजोरम की भौगोलिक स्थिति उसके लिए एक अभिशाप बन गई है। यह म्यांमार की सीमा से सटा हुआ है, जो दुनिया के सबसे बड़े ड्रग्स उत्पादक क्षेत्र 'गोल्डन ट्राएंगल' का हिस्सा है। इसी वजह से, मिजोरम अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स तस्करों के लिए भारत में घुसने का एक आसान गलियारा (ट्रांजिट रूट) बन गया है। ड्रग्स यहां से होकर देश के दूसरे हिस्सों में पहुंचाई जाती है, लेकिन इस प्रक्रिया में इसका जहर मिजोरम की अपनी नसों में भी घुल गया है।

नतीजा? हजारों युवा नशे की लत का शिकार हो चुके हैं और कई अपनी जान गंवा चुके हैं।

सिर्फ पुलिस नहीं, पूरा समाज लड़ेगा यह जंग

सरकार ने यह साफ कर दिया है कि यह लड़ाई सिर्फ पुलिस के डंडे से नहीं जीती जा सकती। इसीलिए, इस चार महीने के अभियान को एक सामाजिक आंदोलन का रूप दिया गया है। इसमें शामिल हैं:

पुलिस और नारकोटिक्स विभाग: जो तस्करों की कमर तोड़ेंगे और सप्लाई चेन को काटेंगे।

स्वास्थ्य विभाग: जो नशा करने वालों के इलाज और पुनर्वास के लिए काम करेगा।

शिक्षा और समाज कल्याण विभाग: जो स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता अभियान चलाएंगे।

सामाजिक संगठन: सबसे बड़ी ताकत के रूप में, राज्य के प्रभावशाली सामाजिक संगठन, जैसे यंग मिजो एसोसिएशन (YMA), भी इस लड़ाई में सरकार का साथ देंगे।

क्या है सरकार का 'डबल-अटैक' प्लान?

यह अभियान एक दो-धारी तलवार की तरह काम करेगा:

सप्लाई पर चोट: ड्रग्स की तस्करी को पूरी तरह से रोकना। सीमाओं पर सख्ती बढ़ाना और तस्करों को पकड़कर सख्त से सख्त सजा दिलाना।

डिमांड पर चोट: युवाओं को नशे के खिलाफ जागरूक करना और जो इस लत में फंस चुके हैं, उन्हें प्यार और इलाज से वापस मुख्यधारा में लाना।

मिजोरम सरकार का यह कदम इस बात का ऐलान है कि वह अब अपनी युवा पीढ़ी को और बर्बाद होते हुए नहीं देख सकती। यह एक लंबी और कठिन लड़ाई है, लेकिन इस चार महीने के महा-अभियान ने यह उम्मीद जगा दी ہے کہ शायद इस बार इस 'नासूर' पर जीत हासिल की जा सकेगी।

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