
Up Kiran, Digital Desk: ज़रा अपने बचपन को याद कीजिए। क्या आपको वो मुश्किल मैथ्स क्लास आज भी सबसे ज़्यादा याद है, या वो शामें जब दोस्तों के साथ गली में दौड़ लगाई थी? जब तक अंधेरा न हो जाए, क्रिकेट खेला था, या फिर अपना पहला गोल करने की वो बेमिसाल खुशी? हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए, वो यादें जो आज भी चेहरे पर एक पल में मुस्कान ला देती हैं, वे अक्सर खेल के मैदान से ही जुड़ी होती हैं.
लेकिन, आज के बच्चे एक बहुत अलग दुनिया में बड़े हो रहे हैं. होमवर्क अक्सर खेल के मैदान पर हावी हो जाता है और स्क्रीन ने फुटबॉल के मैदानों की जगह ले ली है. फिर भी, अगर कोई एक तोहफा है जो हमें अपने बच्चों को ज़रूर देना चाहिए, तो वह है खेल से मिलने वाली खुशी. क्योंकि खेल सिर्फ फिट रहने के बारे में नहीं है - यह इस बारे में है कि वे इंसान कैसे बनेंगे.
किताबों से परे, ज़िंदगी के असली सबक
खेल के मैदान पर बच्चे वे सबक सीखते हैं जो कोई क्लासरूम नहीं सिखा सकता. वे सीखते हैं कि गिरकर उठने का क्या मतलब होता है, हारकर भी मुस्कुराना कैसा होता है, एक दोस्त के लिए ताली बजाना और अगले दिन खुद को थोड़ा और बेहतर बनाने की कोशिश करना क्या होता है. एक शॉट चूक जाना सिर्फ एक असफलता नहीं है - यह मज़बूत इरादे और जुझारूपन को बनाने की एक सीढ़ी है. टीम के साथ मिलकर बनाई गई रणनीति सिर्फ एक प्लान नहीं है - यह अपनेपन और एकता का एहसास है.
दोबारा कोशिश करने का आत्मविश्वास
हर बच्चे को अपनी ज़िंदगी में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. खेल उन्हें सिखाता है कि मुश्किलें कहानी का अंत नहीं होतीं, वे तो एक बड़े खेल का छोटा सा हिस्सा होती हैं. आउट होने के बाद दोबारा मैदान में उतरने का साहस, या रेस हारने के बाद अगले दिन फिर से अपने जूते कसने की हिम्मत - ये वो छोटी-छोटी लेकिन ताकतवर जीत हैं जो ज़िंदगी भर के लिए आत्मविश्वास बनाती हैं.
मन के लिए एक सुकून का कोना
एक ऐसे समय में जब बच्चे भी तनाव की बात करने लगे हैं, खेल उनके लिए एक सुकून का कोना बन जाता है. ट्रैक पर दौड़ना, गेंद के पीछे भागना, या पूल में गोता लगाना उनके दिमाग को इस तरह से आज़ाद करता है जैसे कोई और चीज़ नहीं कर सकती. यह सिर्फ कसरत नहीं है - यह खुशी, हंसी और उन दोस्ती के बारे में है जो सिर्फ खेल के मैदान पर ही पनपती है.
सिर्फ एथलीट नहीं, बेहतर इंसान बनाता है खेल
यह ज़रूरी नहीं कि खेलने वाला हर बच्चा एक पेशेवर एथलीट बने - और यही तो सबसे बड़ी बात है. असली मकसद ऐसे बच्चे तैयार करना है जो अनुशासन, टीम वर्क और दूसरों के प्रति सहानुभूति का मूल्य जानते हों. जो यह सीखते हैं कि लीडरशिप का मतलब दूसरों को ऊपर उठाना है. जो यह समझते हैं कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी दौलत है, और खेलना उतना ही ज़रूरी है जितना कि पढ़ाई.
अपने सबसे सरल रूप में, बच्चों को पूरी तरह से जीना सिखाते हैं - पसीने से तर, मुस्कुराते हुए और दोबारा कोशिश करने से नहीं डरते हुए. तो चलिए, अपने बच्चों को दौड़ने, खेलने, कूदने और मुकाबला करने के लिए प्रोत्साहित करें. क्योंकि एक दिन, जब मेडल भुला दिए जाएंगे, तो जो बचेगा वह होगा मज़बूत चरित्र, सच्ची दोस्ती, और यह जानने की खुशी कि उन्होंने खेल को पूरी शिद्दत से खेला.
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