Up Kiran, Digital Desk: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारत की आर्थिक वृद्धि के दृष्टिकोण पर अपना आकलन प्रस्तुत किया है। केंद्रीय बैंक ने आगाह किया है कि कुछ प्रमुख "वैश्विक जोखिम" (global risks) देश की आर्थिक प्रगति में बाधा बन सकते हैं। यह आकलन वैश्विक आर्थिक माहौल में जारी अनिश्चितता और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय कारकों के संभावित प्रभाव को दर्शाता है।
RBI का मानना है कि ये बाहरी कारक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियाँ पेश कर सकते हैं, जिससे वृद्धि की गति प्रभावित हो सकती है। हालाँकि भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है और इसमें लचीलापन (resilience) है, वैश्विक स्तर पर जारी अनिश्चितता, विभिन्न भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक दबावों का असर अप्रत्यक्ष रूप से भारत की वृद्धि दर पर पड़ सकता है।
केंद्रीय बैंक इन वैश्विक जोखिमों पर कड़ी नज़र रख रहा है क्योंकि ये उसकी मौद्रिक नीति निर्धारण और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के प्रयासों को प्रभावित कर सकते हैं। RBI के अनुसार, वैश्विक मंदी का खतरा, अस्थिर ऊर्जा और कमोडिटी कीमतें, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सुस्ती कुछ ऐसे कारक हैं जो भारत की विकास संभावनाओं को धीमा कर सकते हैं या उन पर दबाव डाल सकते हैं।
RBI का यह आकलन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाता है कि भारत की अर्थव्यवस्था, वैश्विक प्रणाली का हिस्सा होने के नाते, बाहरी झटकों से पूरी तरह अछूती नहीं है। इन वैश्विक जोखिमों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना भारत की आर्थिक वृद्धि की गति को बनाए रखने के लिए आवश्यक होगा, भले ही घरेलू कारक मजबूत समर्थन प्रदान कर रहे हों। यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं और व्यवसायों के लिए एक अनुस्मारक है कि वैश्विक परिदृश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है।
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