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धर्म डेस्क। सनातन धर्म - परंपरा में गुरु की पूजा का विशेष महत्व होता है। गुरु को भगवान से भी बड़ा माना गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि गुरु को समर्पित है। इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व 21 जुलाई को पड़ रहा है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा पर ग्रह नक्षत्रों का अद्भुत महासंयोग भी बन रहा है। शास्त्रों के अनुसार जीवन में सफलता के लिए गुरु का होना आवश्यक है। गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को ही महान ऋषि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए इसे इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस शुभ तिथि पर गुरु की पूजा और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।  

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस बार गुरु पूर्णिमा पर सर्वार्थ सिद्धि योग, रवण नक्षत्र व प्रीति और विष्कंभ योग बन रहा है। वैदिक पंचांग के अनुसार पूर्णिमा को प्रातः 5 बजकर 37 मिनट से सर्वार्थ सिद्धि योग की शुरुआत होगी, जो मध्य रात 12 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगा। अर्थात पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बना रहेगा। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की विधिवत पूजा कर दान देने से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समस्याएं छूमंतर हो जाएंगी।

गुरु पूर्णिमा पर्व पर गंगा स्नान और दान का भी विशेष महत्व है। इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद अपने माता-पिता को गुरु मानकर उनका चरण स्पर्श करना चाहिए। ऐसा करते समय माता पिता के चरणों मे पुष्प अवश्य चढ़ाएं। इससे जीवन के समस्त संकट दूर होने लगते हैं। इसके साथ ही गुरु पूर्णिमा पर गरीबों को दान देने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

उल्लेखनीय है कि भारत में प्राचीन काल से ही गुरु ईश्वर तुल्य माना गया है। संत कबीरदास ने अपने दोहे में गुरु की महिमा का इस तरह बखान किया है -  गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु अपने, गोविंद दियो बताए।। अर्थात यदि गुरु और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए ? गुरु को या गोविंद को ? बाबा कबीर कहते हैं कि ऐसी स्थिति हो तो गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उनके ज्ञान से ही आपको गोविंद के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। 

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