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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आक्रामक व्यापारिक रवैये और चीन पर लगाए गए भारी टैरिफ (शुल्क) ने न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला दिया है, बल्कि इसने भारत और चीन के बीच दशकों पुराने संबंधों में भी एक अनपेक्षित 'पिघलाव' (thaw) का माहौल बनाया है। यह सब कैसे हुआ? क्या चीन का भारत की ओर यह झुकाव सच्चा है, या यह केवल ट्रंप की नीतियों का एक अस्थायी नतीजा है? आइए, इस जटिल भू-राजनीतिक समीकरण को गहराई से समझते हैं।

ट्रंप का 'ट्रेड वॉर' और चीन की रणनीति: भारत को मिला मौका?

डोनाल्ड ट्रंप, अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी और अब दूसरे कार्यकाल की तैयारी में भी, चीन पर कड़े व्यापारिक नियम लागू करने के पक्षधर रहे हैं। चीन से आयात होने वाले सामानों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाना, जैसे कि कुछ उत्पादों पर 245% तक का शुल्क, चीन की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस बीच, अमेरिका ने भारत पर भी 50% तक का टैरिफ लगाया है, खासकर भारत द्वारा रूस से तेल की खरीद पर।

इन अमेरिकी नीतियों का सीधा असर चीन पर पड़ा है, जिसने अपनी निर्माण इकाइयों को भारत जैसे देशों में स्थानांतरित करने वाली अमेरिकी कंपनियों को रोकने के लिए एक नई रणनीति अपनाई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन ने अब भारत के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इसमें भारतीयों के लिए वीज़ा नियमों में ढील देना, भारत के लिए डायरेक्ट फ्लाइट्स फिर से शुरू करने की पेशकश करना और यहां तक कि भारत में बैन किए गए चीनी ऐप्स पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की मंशा जताना भी शामिल है। चीनी राजदूतों ने भारत को 'मित्र' बताया है और चीन को 'खुला, सुरक्षित और मैत्रीपूर्ण' राष्ट्र के रूप में पेश किया है।

भारत का रुख: सतर्कता और सीमा पर स्थिरता की मांग

हालांकि, भारत इस मामले में बेहद सतर्क रुख अपनाए हुए है। भारत का स्पष्ट मानना है कि चीन के साथ किसी भी तरह के आर्थिक सामान्यीकरण या संबंधों को सामान्य बनाने का रास्ता सीमा पर स्थिरता से होकर गुजरता है। 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक झड़पों के बाद से, भारत ने चीन पर भरोसा नहीं किया है। भारत सरकार का कहना है कि जब तक पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर 2020 की स्थिति बहाल नहीं होती, और तनाव के प्रमुख बिंदुओं से सैनिकों को पीछे नहीं हटाया जाता, तब तक संबंधों को सामान्य करना मुश्किल है।

भू-राजनीतिक शतरंज का नया खेल?

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ट्रंप की नीतियां, जिन्होंने भारत और चीन दोनों को प्रभावित किया है, ने दोनों देशों को एक-दूसरे के करीब आने के लिए मजबूर किया है। चीन, जो अमेरिका के साथ संभावित व्यापार युद्ध की तैयारी कर रहा है, भारत जैसे बड़े पड़ोसी के साथ स्थिर संबंध चाहता है। वहीं, भारत भी अमेरिकी अनिश्चितताओं के बीच अपनी कूटनीतिक और आर्थिक चालों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। यह संभव है कि भारत, चीन के साथ अपने संबंधों को सुधार कर, अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम करने और अधिक रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने की कोशिश कर रहा हो।

क्या है असली वजह: दोस्ती या व्यापार का गणित?

चीन की ओर से भारत को 'मित्र' कहने और वीज़ा नियमों में ढील देने जैसे कदम, विशेष रूप से तब उठाए जा रहे हैं जब अमेरिका चीन के साथ कड़ा रुख अपनाए हुए है। यह कूटनीति का एक अहम पहलू है, जहां देश अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए अप्रत्याशित गठबंधन बनाते हैं। भारत, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, चीनी कंपनियों के लिए एक आकर्षक बाजार है। वहीं, चीन भी भारतीय बाजार में अपनी पैठ बनाए रखना चाहता है, खासकर उन तकनीकी कंपनियों के लिए जो स्मार्टफोन जैसे उत्पादों से भारी मुनाफा कमाती हैं।

लेकिन, भारत को यह याद रखना होगा कि चीन के इरादे क्या हैं। 2020 के सीमा संघर्ष ने यह साबित कर दिया है कि विश्वास कायम करना आसान नहीं है। जब तक सीमा पर शांति और विश्वास बहाली के ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक चीन के साथ 'गर्मजोशी' के किसी भी दावे पर संदेह करना स्वाभाविक है।

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