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Up Kiran, Digital Desk: सर्दियों की दस्तक के साथ ही शहरों में हवा जहरीली होने लगती है. हवा की बिगड़ती क्वालिटी यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) का खतरनाक स्तर सिर्फ खांसी, गले में खराश या आंखों में जलन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे फेफड़ों पर एक ऐसा धीमा हमला है जो निमोनिया जैसी जानलेवा बीमारी का कारण बन रहा है. डॉक्टरों का कहना है कि वायु प्रदूषण फेफड़ों की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को तबाह कर देता है, जिससे बैक्टीरिया और वायरस को हमला करने का खुला मौका मिल जाता है.

कैसे जहरीली हवा फेफड़ों को लाचार बना देती है?

हमारे फेफड़ों में छोटे-छोटे बालों जैसी एक संरचना होती है, जिसे सिलिया (Cilia) कहते हैं इसका काम किसी चौकीदार की तरह होता है जो सांस के साथ अंदर आने वाली धूल, गंदगी और हानिकारक कीटाणुओं को बाहर धकेलता है. लेकिन जब हम लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं तो धुएं में मौजूद PM2.5 जैसे छोटे-छोटे कण इन सिलिया को नुकसान पहुंचाते हैं.

इस हमले से फेफड़ों की अंदरूनी परत में सूजन आ जाती है और उनकी सफाई करने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है ऐसे में, जो बैक्टीरिया या वायरस सामान्य हालात में शायद हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाते, वे कमजोर फेफड़ों में आसानी से घर बना लेते हैं और संक्रमण फैला देते हैं, जो आगे चलकर निमोनिया का रूप ले लेता है.

कमजोर इम्यूनिटी पर प्रदूषण का डबल अटैक

प्रदूषण सिर्फ फेफड़ों को ही कमजोर नहीं करता, बल्कि यह हमारे पूरे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) पर भी सीधा हमला करता है. जब हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, तो हमारा इम्यून सिस्टम बाहरी खतरे को भांपकर लड़ने के लिए एक्टिव हो जाता है. लेकिन लंबे समय तक ऐसा होने पर शरीर में एक सूजन की स्थिति बन जाती है, जिससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भटक जाती है और कमजोर पड़ने लगती है.

एक कमजोर इम्यून सिस्टम का मतलब है कि शरीर निमोनिया जैसे संक्रमणों से ठीक तरह से नहीं लड़ पाता प्रदूषण से फेफड़े पहले ही कमजोर हो चुके होते हैं और ऊपर से इम्यूनिटी भी साथ नहीं देती. यह स्थिति बच्चों, बुजुर्गों और पहले से सांस की बीमारी (जैसे अस्थमा) झेल रहे लोगों के लिए बेहद खतरनाक हो जाती है

साधारण सर्दी-जुकाम बन रहा गंभीर निमोनिया

चिंता की बात यह है कि प्रदूषण के कारण अब साधारण सर्दी-जुकाम भी गंभीर निमोनिया में बदल रहा है. जहरीली हवा फेफड़ों में इतनी सूजन पैदा कर देती है कि हल्का सा वायरल इन्फेक्शन भी खतरनाक रूप ले लेता है. डॉक्टर यह भी बताते हैं कि प्रदूषण के कारण निमोनिया के लक्षणों को पहचानना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि प्रदूषण से होने वाली खांसी और सांस की तकलीफ, निमोनिया के लक्षणों से मेल खाती है, जिससे सही इलाज में देरी हो सकती है.

निष्कर्ष यह है कि हवा में घुला जहर हमारे शरीर के दो सबसे बड़े सुरक्षा गार्ड- फेफड़े और इम्यून सिस्टम, दोनों को एक साथ कमजोर कर रहा है, जिससे निमोनिया जैसी बीमारियां पहले से कहीं ज्यादा घातक साबित हो रही हैं.