
Up Kiran, Digital Desk: आज हम कारगिल विजय दिवस मना रहे हैं, यह दिन 1999 के कारगिल युद्ध में भारत की जीत का प्रतीक है। यह युद्ध भारतीय सेना के लिए एक बड़ी चुनौती था, खासकर जब दुश्मन ऊँची चोटियों पर बैठा था। उस मुश्किल समय में, इज़राइल का रणनीतिक समर्थन भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिसने हमारी रक्षा क्षमताओं को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाया।
संकट में इज़राइल का 'अदृश्य' हाथ:
कारगिल युद्ध के दौरान, भारत को तत्काल ऐसे अत्याधुनिक उपकरणों की आवश्यकता थी जो पहाड़ी इलाकों में प्रभावी हों। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हथियारों की बिक्री पर प्रतिबंध और पाकिस्तान के साथ उसके करीबी संबंधों के कारण, भारत ने इज़राइल की ओर रुख किया। इज़राइल ने बिना किसी झिझक के, तुरंत प्रतिक्रिया दी। रिपोर्टों के अनुसार, इज़राइल ने चुपचाप, लेकिन तेज़ी से ऐसे महत्वपूर्ण हथियार और खुफिया उपकरण भारत को भेजे, जिनकी उस समय सबसे अधिक आवश्यकता थी।
इनमें मुख्य रूप से उन्नत लेजर-निर्देशित मिसाइल किट शामिल थे, जिन्हें भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों पर लगे बमों में फिट किया जा सकता था। इससे हमारी वायुसेना को दुश्मन के बंकरों और ठिकानों को ऊँचाई से सटीकता से निशाना बनाने में मदद मिली। इसके अलावा, इज़राइल ने भारत को अपने हेरॉन (Heron) और सर्चर (Searcher) जैसे मानव रहित हवाई वाहन (UAVs) भी उपलब्ध कराए, जिन्होंने दुश्मन की गतिविधियों की सटीक खुफिया जानकारी जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये UAVs मुश्किल पहाड़ी इलाकों में भी दुश्मन के ठिकानों की निगरानी कर सकते थे।
युद्ध पर प्रभाव और दीर्घकालिक संबंध:
इन अत्याधुनिक हथियारों और खुफिया जानकारी की बदौलत भारतीय सेना को दुश्मन पर निर्णायक बढ़त मिली। लेजर-निर्देशित बमों की सटीकता ने दुश्मन के मजबूत ठिकानों को ध्वस्त करने में मदद की, और UAVs से मिली जानकारी ने हमारी सेना को बेहतर रणनीति बनाने में सक्षम बनाया। इससे युद्ध में हमारी जीत की राह आसान हुई।
कारगिल युद्ध के बाद भारत और इज़राइल के बीच रक्षा संबंध और मजबूत हुए। यह केवल एक युद्धकालीन समर्थन नहीं था, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत थी। इज़राइल, अपनी उन्नत रक्षा तकनीक और अभिनव दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षा भागीदार बन गया।
भारत ने भी कारगिल के बाद अपनी रक्षा नीति में बड़े बदलाव किए। आयात पर अत्यधिक निर्भरता कम करने और स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर जोर देने का निर्णय लिया गया। 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत आज हम बोफोर्स से ब्रह्मोस तक, और मिग से राफेल व तेजस तक एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, जो हमारी बढ़ती सैन्य आत्मनिर्भरता का प्रमाण है।
आज, भारत और इज़राइल विभिन्न रक्षा परियोजनाओं, खुफिया जानकारी साझा करने और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे हैं। कारगिल युद्ध में इज़राइल का समर्थन भारतीय रक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसने न केवल एक युद्ध जीतने में मदद की, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिए भारत को तैयार करने में भी योगदान दिया।
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