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Up Kiran, Digital Desk: आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में रिश्ते जितने जरूरी हैं, उतने ही जटिल भी हो गए हैं। एक मजबूत और संतुलित रिश्ता जहां इंसान को मानसिक तौर पर सुकून देता है, वहीं असंतुलित और एकतरफा संबंध धीरे-धीरे मानसिक थकान और आत्म-संदेह की वजह बन सकते हैं। कई बार लोग बिना समझे ऐसे रिश्तों में उलझे रहते हैं, जो धीरे-धीरे उनके आत्मविश्वास और मानसिक शांति को खत्म कर देते हैं।
जब केवल आप ही कोशिश कर रहे हों
एकतरफा रिश्तों की सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि केवल एक व्यक्ति पूरी कोशिश करता है, जबकि दूसरा दूरी बनाकर चलता है। ऐसा रिश्ता धीरे-धीरे एक बोझ बन जाता है, जहां इंसान बार-बार सोचता है कि क्या गलती उससे हुई है। इस तरह की भावनाएं आत्मग्लानि और आत्म-संशय को जन्म देती हैं, जो व्यक्ति के आत्मसम्मान पर गहरा असर डाल सकती हैं।
नजरअंदाज किया जाना बनता है मानसिक थकावट की वजह
किसी भी करीबी संबंध में जब आपका साथी आपकी भावनाओं को तवज्जो नहीं देता, बात करने से बचता है, या आपकी मौजूदगी को अहमियत नहीं देता, तो यह व्यवहार सामने वाले व्यक्ति में असुरक्षा की भावना पैदा करता है। बार-बार कॉल या मैसेज करने के बावजूद जब जवाब न मिले, तो व्यक्ति खुद को उपेक्षित महसूस करने लगता है। यह स्थिति तनाव, बेचैनी और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं को जन्म दे सकती है।
समय न देना भी एक तरह की दूरी है
रिश्ते की शुरुआत में जहां समय और साथ की कोई कमी नहीं होती, वहीं कुछ महीनों या सालों बाद जब एक साथी व्यस्तताओं का हवाला देकर दूरी बना लेता है, तो यह एक नकारात्मक संकेत हो सकता है। इस दूरी का सीधा असर मानसिक स्थिति पर पड़ता है। दिनभर उस व्यक्ति के बारे में सोचते रहना, उसकी बातों का इंतजार करना और फिर नाउम्मीदी हाथ लगना, यह चक्र धीरे-धीरे भावनात्मक थकावट में बदल जाता है।
कैसे पहचानें कि रिश्ता मानसिक बोझ बन चुका है?
आप हमेशा खुद को दोषी महसूस करने लगे हों।
आत्म-संदेह और आत्म-ग्लानि बढ़ रही हो।
बात न होने पर बेचैनी और खालीपन महसूस होता हो।
आपका मूड अक्सर निराशाजनक रहने लगा हो।
आप पहले से ज्यादा चिड़चिड़े या असहाय महसूस करते हों।
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