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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका की टैरिफ (आयात शुल्क) नीतियों के कारण भारत-अमेरिका के बीच बहुचर्चित रक्षा सौदों पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ के जवाब में स्ट्राइकर बख्तरबंद लड़ाकू वाहन (AFV), जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइल और बोइंग P-8I समुद्री गश्ती विमानों की खरीद और सह-उत्पादन (co-production) की योजनाओं को अस्थायी रूप से रोक दिया है। 

रक्षा सौदों पर टैरिफ का प्रभाव:अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद जारी रखने पर भारतीय निर्यात पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जिससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया।  इस कदम के जवाब में, भारत ने अमेरिका से हथियारों और विमानों की नई खरीद की योजनाओं को होल्ड पर रख दिया है। इस स्थगन से लगभग 45,000 करोड़ रुपये से अधिक के सौदों पर असर पड़ रहा है, जिसमें स्ट्राइकर वाहन, जेवलिन मिसाइल और छह अतिरिक्त P-8I पोसाइडन समुद्री गश्ती विमानों की खरीद शामिल है।

 विमानों का संचालन कर रही है और अपनी नौसैनिक निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए छह और विमान खरीदने की योजना बना रही थी।  हालांकि, अमेरिकी टैरिफ के कारण इन विमानों की लागत में करीब 50% की वृद्धि हो गई है, जिससे यह सौदा फिलहाल रुका हुआ है। मई 2021 में, अमेरिकी विदेश विभाग ने छह अतिरिक्त P-8I विमानों और संबंधित उपकरणों की संभावित बिक्री को मंजूरी दी थी, जिसका अनुमानित लागत $2.42 बिलियन था। 

स्ट्राइकर और जेवलिन मिसाइल सौदे

इसी तरह, स्ट्राइकर इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल और जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों के सह-उत्पादन पर भी चर्चा रुकी हुई है।  भारत अपनी सैन्य आधुनिकीकरण योजनाओं के तहत, विशेषकर चीन सीमा पर अपनी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए, इन महत्वपूर्ण हथियारों को प्राप्त करने की इच्छा रखता था। 

MEA का बयान और रणनीतिक पुनःमूल्यांकन

विदेश मंत्रालय (MEA) ने हालांकि हाल ही में अपने एक बयान में कहा है कि रक्षा खरीद प्रक्रियाओं के अनुसार प्रगति जारी है।  लेकिन यह भी स्पष्ट किया गया कि भारत अमेरिका के साथ संबंधों को आपसी सम्मान और साझा हितों के आधार पर आगे बढ़ाना चाहता है।  टैरिफ को लेकर चल रहे तनाव और द्विपक्षीय संबंधों की दिशा में अनिश्चितता के कारण, भारत इन रक्षा सौदों पर आगे बढ़ने से पहले स्थिति स्पष्ट होने का इंतजार कर रहा है। यह कदम भारत की सामरिक स्वायत्तता और लागत संबंधी चिंताओं को भी दर्शाता है, साथ ही स्वदेशी रक्षा विकल्पों में बढ़ती रुचि को भी उजागर करता है।

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