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Up Kiran, Digital Desk: हर साल 11 जुलाई को 'विश्व जनसंख्या दिवस' (World Population Day) मनाया जाता है। यह दिन सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं करता, बल्कि दुनिया भर में बढ़ती जनसंख्या से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे पर्यावरण पर प्रभाव, स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ, गरीबी, संसाधनों का न्यायसंगत वितरण और मानवाधिकारों पर पड़ने वाले असर के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह हमें जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ 'समानता' के महत्व पर गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता है।

विश्व की आबादी लगातार बढ़ रही है, और यह वृद्धि हमारे ग्रह के सीमित संसाधनों पर भारी दबाव डाल रही है। जल, भोजन, ऊर्जा और रहने योग्य स्थान जैसे बुनियादी संसाधनों की उपलब्धता पर इसका सीधा असर पड़ता है। इसके अलावा, जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव है, जिससे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का नुकसान जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

लेकिन बात सिर्फ संख्या की नहीं है, बल्कि 'समानता' और न्यायसंगत वितरण की भी है। क्या बढ़ती आबादी के बावजूद सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ पानी और पर्याप्त भोजन जैसी बुनियादी सुविधाएँ मिल पा रही हैं? यह दिन हमें याद दिलाता है कि जनसंख्या वृद्धि के साथ, संसाधनों का न्यायसंगत वितरण और अवसरों की समानता सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है। 

लैंगिक समानता (gender equality) और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार (reproductive health rights) भी इसमें शामिल हैं, ताकि हर व्यक्ति अपनी मर्जी से अपने परिवार का आकार तय कर सके और स्वस्थ जीवन जी सके।

विश्व जनसंख्या दिवस हमें सिर्फ चुनौतियों के बारे में सोचने के लिए नहीं कहता, बल्कि समाधान खोजने के लिए भी प्रेरित करता है। यह सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals - SDGs) को प्राप्त करने के लिए जनसंख्या संबंधी कारकों को समझने और उन पर कार्रवाई करने का आह्वान है। हमें गरीबी कम करने, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने और सभी के लिए एक न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य बनाने के लिए काम करना होगा।

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